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________________ १८२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद (३७] और फिर जो आठ मदवाले, नष्ट हुई हो वैसी बुद्धिवाले और वक्रपन को (माया को) धारण करनेवाले असमाधि से मरते है उन्हें निश्चयसे आराधक नहीं कहा है । [३८] मरण विराधे हुए (असमाधि मरण द्वारा) देवता में दुर्गति होती है । सम्यक्त्व पाना दुर्लभ है और फिर आनेवाले काल में अनन्त संसार. होता है । [३९] देव की दुर्गति कौन-सी ? अबोधि क्या है ? किस लिए (बार-बार) मरण होता है ? किस वजह से जीव अनन्त काल तक घूमता रहता है ? [४०] मरण विराधे हुए कंदर्प (मश्करा) देव, किल्बिषिक देव, चाकर देव, असुर देव और संमोहा (स्थान भ्रष्ट) देव यह पांच दुर्गति होती है । [४१] इस संसारमें-मिथ्यादर्शन रक्त, नियाणा सहित, कृष्ण लेश्यावाले जो जीव मरण पाते है- उनको बोधि बीज दुर्लभ होता है । [४२] इस संसार में सम्यक् दर्शन में रक्त, नियाणा रहित, शुक्ल लेश्यावाले जो जीव मरण पाते है उन जीव को बोधि बीज (समकित) सुलभ होता है । [४३] जो गुरु के शत्रु रूप, बहुत मोहवाले, दूषण सहित, कुशील होते है और असमाधि में मरण पाते है वो अनन्त संसारी होते है । [४४] जिन वचन में रागवाले, जो गुरु का वचन भाव से स्वीकार करते है, दूषण रहित है और संक्लेशरहित होते है वे अल्प संसारवाले होते है । जो जिन वचन को नहीं जानते वो बेचारे (आत्मा) [४५] बाल मरण और कई बार बिना ईच्छा से मरण पाते है । [४६] शस्त्रग्रहण (शस्त्र से आत्महत्या करना), विषभक्षण, जल जाना, पानी में डूब मरना, अनाचार और अधिक उपकरण का सेवन करनेवाले जन्म, मरण की परम्परा बढ़ानेवाले होते है । [४७] उर्ध्व, अधो, तिर्छा (लोक) में जीव ने बालमरण किए । लेकिन अब दर्शन ज्ञान सहित मैं पंड़ित मरण से मरूँगा ।। [४८) उद्वेग करनेवाले जन्म, मरण और नरक में भुगती हुई वेदना, उनको याद करते हुए अब तुम पंड़ित मरण से मरो । [४९] यदि दुःख उत्पन्न हो तो स्वभाव द्वारा उसकी विशेष उत्पत्ति देखना (संसार में भुगते हुए विशेष दुःख को याद करना) संसार में भ्रमण करते हुए मैने क्या-क्या दुःख नहीं पाए (ऐसा सोचना चाहिए ।) [५०] और फिर मैंने संसार चक्र में सर्वे पुद्गल कईं बार खाए ओर परिणमाए, तो भी मैं तृप्त नहीं हुआ । [५१] तृण और लकड़े से जैसे अग्नि तृप्त नहीं होता और हजारो नदीयों से जैसे लवण समुद्र तृप्त नहीं होता, वैसे काम भोग द्वारा यह जीव तृप्ति नहीं पाता । [५२] आहार के लिए (तंदुलीया) मत्स्य साँतवी नरकभूमि में जाते है । इसलिए सचित आहार करने की मन से भी इच्छा या प्रार्थना करता उचित नहीं है । [५३] जिसने पहेले (अनशन का) अभ्यास किया है, और नियाणा रहित हुआ हूं ऐसा मैं मति और बुद्धि से सोचकर फिर कषाय को रोकनेवाला मैं शीघ्र ही मरण अंगीकार
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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