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________________ आतुरप्रत्याख्यान-१ १७९ नमो नमो निम्मलदंसणस्स २५ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-२-हिन्दी अनुवाद [१] छ काय की हिंसा का एक हिस्सा जो त्रस की हिंसा, उसका एक देश जो मारने की बुद्धि से निरपराधी जीवकी निरपेक्षपन से हिंसा, इसलिए और झूठ बोलना आदि से निवृत्त होनेवाला जो समकित दृष्टि जीव मृत्यु पाता है तो उसे जिन शासन में (पाँच मृत्यु में से) बाल पंड़ित मरण कहा है । [२] जिन शासन में सर्व विरति और देशविरति में दो प्रकार का यति धर्म है, उसमें देशविरति को पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मिलने से श्रावक के बारह व्रत बताए है । उस सभी व्रत से या फिर एक दो आदि व्रत समान उसके देश आराधन से जीव देशविरति होते है । [३] प्राणी का वध, जूठ बोलना, अदत्तादान और परस्त्री का नियम करने से तथा परिमाण रहित इच्छा का नियम करने से पाँच अणुव्रत होते है । [४] जो दिविरमण व्रत, अनर्थदंड से निवर्तन रूप अनर्थदंड विरमण और देशावगासिक ये तीनो मिलकर तीन गुणव्रत कहलाते है । ___[५] भोग-उपभोग का परिमाण, सामायिक, अतिथि संविभाग और पौषध ये सब (मिलकर) चार शिक्षाव्रत कहलाते है । [६] शीघ्रतया मृत्यु होने से, जीवितव्य की आशा न तूटने से, या फिर स्वजन से (संलेखना करने की) परवानगी न मिलने से, आखरी संलेखना किए बिना [७] शल्यरहित होकर; पाप आलोचकर अपने घरमें निश्चय से संथारे पर आरूढ होकर यदि देशविरति प्राप्त करके मर जाए तो उसे बाल पंड़ित मरण कहते है । [4] जो विधि भक्तपरिज्ञा में विस्तार से बताया गया है वो यकीनन बाल पंड़ित के लिए यथायोग्य जानना चाहिए । [९] कल्पोपन्न वैमानिक (बार) देवलोक के लिए निश्चय करके उसकी उत्पत्ति होती है और वो उत्कृष्ट से निश्चय करके सांतवे भव तक सिद्ध होता है । [१०] जिन शासन के लिए यह बाल पंड़ित मरण कहा गया है, अब मैं पंड़ितमरण संक्षेप में कहता हूँ । [११] हे भगवंत ! मैं अनशन करने की इच्छा रखता हूँ । पाप व्यवहार को प्रतिक्रमता हूँ । भूतकाल के (पाप को) भावि में होनेवाले (पाप) को, वर्तमान के पाप को, किए हए पाप को, करवाए हुए पाप को और अनुमोदन किए गए पाप का प्रतिक्रमण करता है, मिथ्यात्व का, अविरति परिणाम, कषाय का और पाप व्यापार का प्रतिक्रमण करता हूँ । मिथ्यादर्शन के परिणाम के बारे में, इस लोक के बारे में, परलोक के बारे में, सचित्त के बारे में, अचित्त के बारे में, पाँच इन्द्रिय के विषय के बारे में, अज्ञान अच्छा है ऐसी
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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