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________________ निरयावलिका-१/१७ काहार तथा अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरण को लेकर चंपानगरी से भाग निकला। वैशाली नगरी आया और अपने नाना चेटक का आश्रय लेकर वैशाली नगरी में निवास करने लगा । १४१ तत्पश्चात् कूणिक राजा ने यह समाचार जानकर कि मुझे बिना बताए ही वेहल्लकुमार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार तथा अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरणसाधनों को लेकर यावत् आर्यक चेटक राजा के आश्रय में निवास कर रहा है । तब उसने बुलाकर कहा- तुम वैशाली नगरी जाओ । वहाँ तुम आर्यक चेटकराज को दोनों हाथ जोड़कर यावत् जय-विजय शब्दों से बधाकर निवेदन करना - 'स्वामिन् ! कूणिक राजा विनति करते हैं कि वेहल्लकुमार कूणिक राजा को बिना बताए ही सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को लेकर यहाँ आ गये हैं । इसलिए स्वामिन् ! आप कूणिक राजा को अनुगृहीत करते हुए सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को वापिस लौटा दें । साथ ही वेहल्लकुमार को भेज दें । कूणिक राजा की इस आज्ञा को यावत् स्वीकार करके दूत चित्त सारथी के समान यावत् पास-पास अन्तरावास करते हुए वैशाली नगरी वहाँ आकर जहाँ चेटक राजा का आवासगृह और उसकी बाह्य उपस्थान शाला थी, वहाँ पहुँचा । घोड़ों को रोका और रथ से नीचे उतरा । तदनन्तर बहुमूल्य एवं महान् पुरुषों के योग्य उपहार लेकर जहाँ आभ्यन्तर सभाभवन था, उसमें जहाँ चेटक राजा था, वहाँ पहुँचकर दोनों हाथ जोड़ यावत् 'जय-विजय' शब्दों से उसे बधाया और निवेदन किया- 'स्वामिन् ! कूणिक राजा प्रार्थना करते हैं - वेहल्ल कुमार हाथी और हार लेकर कूणिक राजा की आज्ञा बिना यहाँ चले आए हैं इत्यादि, यावत् हार, हाथी और वेहल्लकुमार को वापिस भेजिए ।' दूत का निवेदन सुनने के पश्चात् चेटक राजा ने कहा- जैसे कूणिक राजा श्रेणिक राजा का पुत्र और चेलना देवी का अंगजात तथा मेरा दौहित्र है, वैसे ही वेहल्लकुमार भी श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज और मेरा दौहित्र है । श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में ही वेहल्लकुमार को सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था । इसलिए यदि कूणिक राजा वेहल्लकुमार को राज्य और जनपद का आधा भाग दे तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को लौटा दूंगा तथा वेहल्लकुमार को भेज दूंगा ।' इसके बाद चेटक राजा द्वारा विदा किया गया वह दूत जहाँ चार घण्टों वाला अश्व - रथ था, वहाँ आया । उस चार घंटों वाले अश्व- रथ पर आरूढ हुआ । वैशाली नगरी के बीच से निकला । साताकारी वसतिकाओं में विश्राम करता हुआ यावत् कूणिक राजा के समक्ष उपस्थित हुआ और कहा - स्वामिन् ! चेटक राजा ने जो फरमाया था- वह सब बताया, चेटक का उत्तर सुनकर कूणिक राजा ने दूसरी बार भी दूत कहा- तुम पुनः वैशाली नगरी जाओ । वहाँ तुम मेरे नाना चेटकराजा से यावत् इस प्रकार निवेदन करो - स्वामिन् ! कूणिक राजा यह प्रार्थना करता है'जो कोई भी रत्न प्राप्त होते हैं, वे सब राजकुलानुगामी होते हैं । श्रेणिक राजा ने राज्य शासन करते हुए, प्रजा का पालन करते हुए दो रत्न प्राप्त किये थे इसलिए राजकुल- परम्परागत स्थिति-मर्यादा को भंग नहीं करते हुए सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को वापिस 1
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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