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________________ १३२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नमो नमो निम्मलदसणस्स |१९| निरयावलिका उपांगसूत्र-८-हिन्दी अनुवाद ( अध्ययन-१-काल [१] श्रुतदेवता को नमस्कार । उस काल उस समय में राजगृह नगर था । वह ऋद्धिसमृद्धि से सम्पन्न था । उसके उत्तर-पूर्व में गुणशिलक चैत्य था । वहाँ उत्तम अशोक वृक्ष था और उसके नीचे एक पृथ्वीशिलापट्टक रखा था । [२] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के अंतेवासी जाति, कुल सम्पन्न आर्य सुधर्मास्वामी अनगार यावत् पांच सौ अनगारों के साथ पूर्वानुपूर्वी के क्रम से चलते हुए जहाँ राजगृह नगर पधारे यावत् यथा-प्रतिरूप अवग्रह प्राप्त करके संयम एवं तपश्चर्या से यावत् आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । दर्शनार्थ परिषद् निकली, धर्मोपदेश दिया, परिषद् वापिस लौटी । [३] उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मास्वामी अनगार के शिष्य समचतुरस्रसंस्थान वाले यावत् अपने अन्तर में विपुल तेजोलेश्या को समाहित किये हुए जम्बू अनगार आर्य सुधर्मास्वामी के थोड़ी दूरी पर ऊपर को घुटने किए हुए थे । [४] उस समय जम्बूस्वामी को श्रद्धा-संकल्प उत्पन्न हुआ यावत् पर्युपासना करते हुए उन्होंने कहा 'भदन्त ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने उपांगों का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उपांगो के पाँच वर्ग कहे हैं । निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा । [५] हे भदन्त ! श्रमण यावत मोक्षप्राप्त भगवान ने निरयावलिका नामक प्रथम उपांगवर्ग के कितने अध्ययन कहे है ? हे जम्बू ! भगवान् महावीर ने प्रथम उपांग निरयावलियाके दस अध्ययन कहे हैं-काल, सुकाल, महाकाल, कृष्ण, सुकृष्ण, महाकृष्ण, वीरकृष्ण, रामकृष्ण, पितृसेन और महासेनकृष्ण । जम्बू अनगार ने पुनः कहा-भगवान् महावीर ने निरयावलिका के दस अध्ययन कहे है तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? -उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में ऋद्धि आदि से सम्पन्न चम्पा नगरी थी । उसके उत्तर-पूर्व दिग्भाग में पूर्णभद्र चैत्य था । श्रेणिक राजा का पुत्र एवं चेलना देवी का अंगजात-कूणिक महामहिमाशाली राजा था । कूणिक राजा की रानी पद्मावती थी । वह अतीव सुकुमाल अंगोपांगों वाली थी । उसी चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा की पत्नी और कूणिक राजा की छोटी माता काली नाम की रानी थी, जो हाथ पैर आदि सुकोमल अंगप्रत्यंगों वाली थी यावत् सुरूपा थी । [६] उस काली देवी का पुत्र काल नामक कुमार था । वह सुकोमल यावत् रूपसौन्दर्यशाली था । तदनन्तर किसी समय कालकुमार ३००० हाथियों, ३००० रथों, ३००० अश्वों और तीन कोटि मनुष्यों को लेकर गरुडव्यूह में, ग्यारहवें खण्ड-अंश के भागीदार कूणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ ।
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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