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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-७/३३२
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रातदिन, पूर्वाषाढा १५ रातदिन तथा उत्तराषाढा १ रातदिन में परिसमाप्त करता है । सूर्य तब वृत्त, समचौरस, संस्थानयुक्त, न्यग्रोधपरिमण्डल-नीचे से संकीर्ण, प्रकाश्य वस्तु के कलेवर के सदृश आकृतिमय छाया से युक्त अनुपर्यटन करता है । उस महीने के अन्तिम दिन परिपूर्ण दो पद पुरुषछायायुक्त पोस्सिी होती है ।
[३३] योग, देवता, तारे, गोत्र, संस्थान, चन्द्र-सूर्य-योग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या. छाया-इनका वर्णन, उपर्युक्त है ।।
३३४] सोलह द्वार क्रमशः इसी प्रकार है-चन्द्र तथा सूर्य के तारा विमानों के अधिष्ठातृदेवों, चन्द्र-परिवार, मेरु से ज्योतिश्चक्र के अन्तर, लोकान्त से ज्योतिश्चक्र के अन्तर, भूतल से ज्योतिश्चक्र के अन्तर तथा छठा द्वार-नक्षत्र अपने चार क्षेत्र के भीतर, बाहर या ऊपर चलते हैं ? इस सम्बन्ध में वर्णन है ।
[३३५] ज्योतिष्क विमानों के संस्थान, ज्योतिष्क देवों की संख्या, चन्द्र आदि देवों के विमानों को करनेवाले देव, देवगति, देवऋद्धि, ताराओं के पारस्परिक अन्तर, चन्द्र आदि की अग्रमहिषियों, आभ्यन्तर परिषत् एवं देवियों के साथ भोग-सामर्थ्य, ज्योतिष्क देवों के आयुष्य तथा सोलहवाँ द्वार-ज्योतिष्क देवों के अल्पबहुत्व का वर्णन है ।
[२३६] भगवन् ! क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र तथा सूर्य के अधस्तन प्रदेशवर्ती तारा विमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र एवं सूर्य से अणु-हीन हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र आदि के विमानों के समश्रेणीवर्ती तथा उपरितन प्रदेशवर्ती ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि में उनसे न्यून हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा
[३३७] भगवन् ! ऐसा किस कारण से है ? गौतम ! पूर्व भव में उन ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों का तप आचरण, नियमानुपालन तथा ब्रह्मचर्य-सेवन जैसा-जैसा उच्च या अनुच्च होता है, तदनुरूप उनमें धुति, वैभव आदि की दष्टि से चन्द्र आदि से हीनता-या तुल्यता होती है । पूर्व भव में उन देवों का तप आचरण नियमानुपालन, ब्रह्मचर्य-सेवन जैसेजैसे उच्च या अनुच्च नहीं होता, तदनुसार उनमें द्युति, वैभव आदि की दष्टि से चन्द्र आदि से न हीनता होती है, न तुल्यता होती है ।।
[३३८] भगवन् ! एक एक चन्द्र का महाग्रह-परिवार, नक्षत्र-परिवार तथा तारागणपरिवार कितना कोड़ाकोड़ी है ? गौतम ! प्रत्येक चन्द्र का परिवार ८८ महाग्रह हैं, २८ नक्षत्र हैं तथा ६६९७५ कोड़ाकोड़ी तारागण हैं।
[३१] भगवन् ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से कितने अन्तर पर गति करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी पर । ज्योतिश्चक्र-लोकान्त से अलोक से पूर्व ११११ योजन के अन्तर पर स्थित है । अधस्तन ज्योतिश्चक्र धरणितल से ७९० योजन की ऊँचाई पर गति करता है । इसी प्रकार सूर्यविमान धरणितल से ८०० योजन की ऊँचाई पर, चन्द्रविमान ८८० योजन की ऊँचाई पर तथा नक्षत्र-ग्रह-प्रकीर्ण तारे ९०० योजन की ऊँचाई पर गति करते हैं । ज्योतिश्चक्र के अधस्तनतल से सूर्यविमान १० योजन के अन्तर पर, ऊँचाई पर गति करता है । चन्द्र-विमान ९० योजन के और प्रकीर्ण तारे ११० योजन के