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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों को नैरयिक जीवों के अनुसार समझना । विशेष यह कि क्रियाओं में विशेषता है । पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तीन प्रकार के हैं, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यमिथ्यादृष्टि । जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के हैं-असंयत और संयतासंयत । जो संयतासंयत हैं, उनको तीन क्रियाएँ लगती हैं, आरम्भिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्यया । जो असंयत होते हैं, उनको चार क्रियाएँ लगती हैं । आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया । जो मिथ्यादृष्टि और सम्यग-मिथ्यादृष्टि हैं, उनको निश्चित रूप से पांच क्रियाएँ लगती हैं, वे इस प्रकार-आरम्भिकी, यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया ।
[४४८] भगवन् ! मनुष्य क्या सभी समान आहार वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकी-मनुष्य दो प्रकार के हैं । महाशरीवाले और अल्प शरीरवाले । जो महाशरीरवाले हैं, वे बहुत-से पुद्गलों का आहार करते हैं, यावत् बहुत-से पुद्गलों का निःश्वास लेते हैं तथा कदाचित् आहार करते हैं, यावत् कदाचित् निःश्वास लेते हैं । जो अल्पशरीवाले हैं, वे अल्पतर पुद्गलों का आहार करते हैं, यावत् अल्पतर पुद्गलों का निःश्वास लेते हैं; बारबार आहार लेते हैं, यावत् बार-बार निःश्वास लेते हैं । शेष सब वर्णन नैरयिकों के अनुसार समझना । किन्तु क्रियाओं की अपेक्षा विशेषता है । मनुष्य तीन प्रकार के हैं । सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि । जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे तीन प्रकार के हैं, संयत, असंयत और संयतासंयत । जो संयत हैं, वे दो प्रकार के हैं-सरागसंयत और वीतरागसंयत। जो वीतरागसंयत हैं, वे अक्रिय होते हैं । जो सरागसंयत होते हैं, वे दो प्रकार के हैं, प्रमत्त और अप्रमत्त । जो अप्रमत्तसंयत होते हैं, उनमें एक मायाप्रत्यया क्रिया होती है । जो प्रमत्तसंयत हैं, उनमें दो क्रियाएँ होती हैं, आरम्भिकी और मायाप्रत्यया । जो संयतासंयत हैं, उनमें तीन क्रियाएँ हैं, आरम्भिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्यया | जो असंयत हैं, उनमें चार क्रियाएँ हैं, आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया; जो मिथ्यादृष्टि अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं, उनमें निश्चितरूप से पांचों क्रियाएँ होती हैं ।
[४४९] असुरकुमारों के समान वाणव्यन्तर देवों की (आहारादि संबंधी वक्तव्यता कहना ।) इसी प्रकार ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के आहारादि में भी कहना । विशेष यह है कि वेदना की अपेक्षा वे दो प्रकार के हैं, मायी-मिथ्यादृष्टि-उपपन्नक और अमायी-सम्यग्दृष्टिउपपन्नक । जो मायी-मिथ्यादृष्टि-उपपत्रक हैं, वे अल्पतर वेदनावाले हैं और जो अमायीसम्यग्दृष्टि-उपपत्रक हैं, वे महावेदनावाले हैं ।
[४५०] भगवन् ! सलेश्य सभी नारक समान आहारवाले, समान शरीरवाले और समान उच्छ्वास-निःश्वासवाले हैं ? सामान्य गम के समान सभी सलेश्य समस्त गम यावत् वैमानिकों तक कहना ।
भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यावाले सभी नैरयिक समान आहारवाले, समान शरीखाले और समान उच्छ्वास-निःश्वासवाले होते हैं ? गौतम ! सामान्य नारकों के समान कृष्णलेश्यावाले नारकों का कथन भी समझना । विशेषता इतनी है कि वेदना की अपेक्षा नैरयिक मायीमिध्यादृष्टि-उपपन्नक और अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक कहना । (कृष्णलेश्यायुक्त) असुरकुमारों से यावत् वाणव्यन्तर के आहारादि सप्त द्वारों के विषय में समुच्चय असुरकुमारादि के समान कहना । मनुष्यों में क्रियाओं की अपेक्षा कुछ विशेषता है । समुच्चय मनुष्यों के क्रियाविषयक