________________
५२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है; इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय जानना । आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं है, आकाशास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है तथा आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है यावत् वनस्पतिकाय से स्पृष्ट है, त्रसकाय से कथंचित् स्पृष्ट है और कथंचित् स्पृष्ट नहीं है, अद्धा-समय से देश से स्पृष्ट है तथा देश से स्पृष्ट नहीं है । जम्बूद्वीप धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं है, धर्मास्तिकाय के देश और प्रदेशों से स्पृष्ट है । इसी प्रकार वह अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के देश और प्रदेशों से स्पृष्ट है, पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय से स्पृष्ट है, त्रसकाय से कथंचित् स्पृष्ट है, कथंचित् स्पृष्ट नहीं है; अद्धा-समय से स्पृष्ट है । इसी प्रकार लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और बाह्य पुष्करार्द्ध में इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि बाह्य पुष्करार्ध से लेकर आगे के समुद्र एवं द्वीप अद्धा-समय से स्पृष्ट नहीं हैं । स्वयम्भूरमणसमुद्र तक इसी प्रकार है ।
[४२९] जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, पुष्करद्वीप, वरुणद्वीप, क्षीवर, घृतवर, क्षोद, नन्दीश्वर, अरुणवर, कुण्डलवर, रुचक ।
[४३०] आभरण, वस्त्र, गन्ध, उत्पल, तिलक, पृथ्वी, निधि, रत्न, वर्षधर, द्रह, नदियाँ, विजय, वक्षस्कार, कल्प, इन्द्र ।
[४३१] कुरु, मन्दर, आवास, कूट, नक्षत्र, चन्द्र, सूर्य, देव, नाग, यक्ष, भूत और स्वयम्भूरमण समुद्र यह क्रम है ।
[४३२] इस प्रकार बाह्यपुष्करार्द्ध के समान स्वयम्भूरमणसमुद्र (तक) 'अद्धा-समय से स्पृष्ट नहीं होता' | भगवन् ! लोक किससे स्पृष्ट है ? इत्यादि समस्त वक्तव्यता लोक (आकाश थिगल) के समान जानना । अलोक धर्मास्तिकाय से यावत आकाशास्तिकाय से स्पष्ट नहीं है; (वह) आकाशास्तिकाय के देश तथा प्रदेशों से स्पृष्ट है; (किन्तु) पृथ्वीकाय से स्पृष्ट नहीं है, यावत् अद्धा-समय से स्पृष्ट नहीं है । अलोक एक अजीवद्रव्य का देश है, अगुरुलघु है, अनन्त अगुरुलघुगुणों से संयुक्त है, सर्वाकाश के अनन्तवें भाग कम है ।
| पद-१५ उद्देशक-२ [४३३] इन्द्रियोपचय, निर्वर्तना, निर्वर्तना के असंख्यात समय, लब्धि, उपयोगकाल, अल्पबहुत्व में विशेषाधिक उपयोग काल । तथा
[४३४] अवग्रह, अवाय, ईहा, व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह, अतीतबद्धपुरस्कृत द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय यह बारह द्वार है ।
[४३५] भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय, चक्षुरिन्द्रियोपचय, घ्राणेन्द्रियोपचय, जिह्वेन्द्रियोपचय और स्पर्शनेन्द्रियोपचय । भगवन् ! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचय । इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के इन्द्रियोपचय के विषय में कहना । जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसके उतने ही प्रकार का इन्द्रियोपचय कहना चाहिए ।
भगवन् ! इन्द्रियनिर्वर्तना कितने प्रकार की है ? गौतम ! पांच प्रकार की, श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना यावत् स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना।
पद.१