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आगमसूत्रत्र - हिन्दी
अनुवाद
[३७८] भगवन् ! मनुष्य, महिष, अश्व, हाथी, सिंह, व्याघ्र, वृक, द्वीपिक, ऋक्ष, तरक्ष, पाराशर, रासभ, सियार, बिडाल, शुनक, कोलशुनक, लोमड़ी, शशक, चीता और चिल्ललक, ये और इसी प्रकार के जो अन्य जीव हैं, क्या वे सब एकवचन हैं ? हाँ गौतम ! हैं । भगवन् ! मनुष्यों से लेकर बहुत चिल्ललक तथा इसी प्रकार के जो अन्य प्राणी हैं, वे सब क्या बहुवचन हैं ? हाँ गौतम ! हैं । भगवन् ! मनुष्य की स्त्री यावत् चिल्ललक स्त्री और अन्य इसी प्रकार के जो भी (जीव) हैं, क्या वे सब स्त्रीवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! मनुष्य से चिल्ललक तक तथा जो अन्य भी इसी प्रकार के प्राणी हैं, क्या वे सब पुरुषवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं ।
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भगवन् ! कांस्य, कंसोक, परिमण्डल, शैल, स्तूप, जाल, स्थाल, तार, रूप, अक्षि, पर्व, कुण्ड, पद्म, दुग्ध, दधि, नवनीत, आसन, शयन, भवन, विमान, छत्र, चामर, भृंगार, अंगन, निरंगन, आभरण और रत्न, ये और इसी प्रकार के अन्य जितने भी (शब्द) हैं, वे सब क्या नपुंसकवचन हैं ? हाँ, गौतम ! हैं ।
भगवन् ! पृथ्वी स्त्रीवचन है, आउ पुरुषवचन है और धान्य, नपुंसकवचन है, क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ गौतम ! यह भाषा प्रज्ञापनी है, यह भाषा मृषा नहीं है । भगवन् ! पृथ्वी, यह भाषा स्त्री - आज्ञापनी है, अप् यह भाषा पुरुषआज्ञापनी है और धान्य, यह भाषा नपुंसक - आज्ञापनी है, क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! पृथ्वी, यह स्त्री - प्रज्ञापनी भाषा है, अपू, यह पुरुष - प्रज्ञापनी भाषा है और धान्य, यह नपुंसक - प्रज्ञापनी भाषा है, क्या यह भाषा आराधनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है । हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । भगवन् ! इसी प्रकार स्त्री या पुरुष अथवा नपुंसकवचन बोलते हुए क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है ।
[३७९] भगवन् ! भाषा की आदि क्या है ? भाषा का प्रभव-स्थान क्या है ? आकार कैसा है ? पर्यवसान कहाँ होता है ? गौतम ! भाषा की आदि जीव है । उत्पादस्थान शरीर है । वज्र के आकार की हैं । लोक के अन्त में उसका पर्यवसान होता है ।
[३८० ] भाषा कहाँ से उद्भूत होती है ? कितने समयों में बोली जाती है ? कितने प्रकार की है ? और कितनी भाषाएँ अनुमत हैं ?
[३८१] भाषा का उद्भव शरीर से होता हैं । समयों में बोली जाती है । भाषा चार प्रकार की है, उनमें से दो भाषाएँ अनुमत हैं ।
[३८२ ] भगवन् ! भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की । पर्याप्तिका और अपर्याप्तिका । पर्याप्तिका भाषा दो प्रकार की है । सत्या और मृषा । भगवन् ! सत्यापर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार की । जनपदसत्या, सम्मतसत्या, स्थापनासत्या, नामसत्या, रूपसत्या, प्रतीत्यसत्या, व्यवहारसत्या, भावसत्या, योगसत्या और औपम्यसत्या ।
[३८३] दस प्रकार के सत्य है, जनपदसत्य, सम्मतसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, व्यवहारसत्य, भावसत्य, योगसत्य और दसवाँ औपम्यसत्य ।
[३८४] भगवन् ! मृषा-पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की है ? गौतम ! दस प्रकार