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चन्द्रप्रज्ञप्ति-२०/-/२१६
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[२१६] धैर्य-उत्थान-उत्साह-कर्म-बल-वीर्य से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए । इनको नियम से आत्मा में धारण करना । अविनीत को कभी ये ज्ञान मत देना ।
[२१७] जन्म-मृत्यु-क्लेश दोष से रहित भगवंत महावीर के सुख देनेवाले चरण कमल में विनय से नम्र हआ मैं वन्दना करता हुं ।
[२१८] ये संग्रहणी गाथाएँ है ।
| १७ | चंद्रप्रज्ञप्ति-उपांगसूत्र-६-हिन्दी अनुवाद पूर्ण
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भाग-८ पूर्ण