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________________ २३६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद मास समुद्र को समझ लेना । सूखरावभास समुद्र, देव नामक द्वीप से चारो तरफ से घीरा हुआ है, यह देवद्वीप वृत्त - वलयाकार एवं समचक्रवाल संस्थित है, चक्रवाल विष्कम्भ से एवं परिध से असंख्य हजार योजन प्रमाण है । इस देवद्वीप में असंख्येय चंद्र यावत् असंख्येय तारागण स्थित है । इसी प्रकार से देवोदसमुद्र यावत् स्वयंभूरमण समुद्र को समझलेना । प्राभृत- १९ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण प्राभृत- २० [१९९] हे भगवंत ! चंद्रादि का अनुभाव किस प्रकार से है इस विषय में दो प्रतिपत्तियां है । एक कहता है कि चंद्र-सूर्य जीवरूप नहीं है, अजीवरूप है; घनरूप नहीं है, सुपिररूप है, श्रेष्ठ शरीरधारी नहीं, किन्तु कलेवररूप है, उनको उत्थान - कर्म-बल-वीर्य या पुरिषकार पराक्रम नहीं है, उनमें विद्युत, अशनिपात ध्वनि नहीं है, लेकिन उनके नीचे बादर वायुकाय संमूर्च्छित होता है और वहीं विद्युत् यावत् ध्वनि उत्पन्न करता है । कोइ दुसरा इस से संपूर्ण विपरीत मतवाला है वह कहता है चंद्र-सूर्य जीवरूप यावत् पुरुष पराक्रम से युक्त है, वह विद्युत् यावत् ध्वनि उत्पन्न करता है । भगवंत फरमाते है कि चंद्र-सूर्य के देव महाऋद्धिक यावत् महानुभाग है, उत्तम वस्त्रमाल्य - आभरण के धारक है, अव्यवच्छित्त नय से अपनी स्वाभाविक आयु पूर्ण करके पूर्वोत्पन्न देवका च्यवन होता है और अन्य उत्पन्न होता है । [२००] हे भगवन् ! राहु की क्रिया कैसे प्रतिपादित की है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियां है - एक कहता है कि राहु नामक देव चंद्र-सूर्य को ग्रसित करता है, दुसरा कहता है कि राहुनामक कोइ देव विशेष है ही नहीं जो चंद्र-सूर्य को ग्रसित करता है । पहले मतवाला का कथन यह है कि-चंद्र या सूर्य को ग्रहण करता हुआ राहु कभी अधोभाग को ग्रहण करके अधोभाग से ही छोड़ देता है, उपर से ग्रहण करके अधो भाग से छोड़ता है, कभी उपर से ग्रहण करके उपर से ही छोड़ देता है, दायिनी ओर से ग्रहण करके दायिनी ओर से छोड़ता है तो कभी बायीं तरफ से ग्रहण करके बांयी तरफ से छोड देता है इत्यादि । जो मतवादी यह कहता है कि राहु द्वारा चंद्र-सूर्य ग्रसित होते ही नहीं, उनके मतानुसारपन्द्रह प्रकार के कृष्णवर्णवाले पुद्गल है-श्रृगांटक, जटिलक, क्षारक, क्षत, अंजन, खंजन, शीतल, हिमशीतल, कैलास, अरुणाभ, परिजय, नभसूर्य, कपिल और पिंगल राहु । जब यह पन्द्रह समस्त पुद्गल सदा चंद्र या सूर्य की लेश्या को अनुबद्ध करके भ्रमण करते है तब मनुष्य यह कहते है कि राहु ने चंद्र या सूर्य को ग्रसित किया है । जब यह पुद्गल सूर्य या चंद्र की श्या को ग्रसित नहीं करते हुए भ्रमण करते है तब मनुष्य कहते है कि सूर्य या चंद्र द्वारा राहु ग्रसित है । हुआ भगवंत फरमाते है कि-राहुदेव महाऋद्धिवाला यावत् उत्तम आभरणधारी है, राहुदेव के नव नाम है -श्रृंगाटक, जटिलक, क्षतक, क्षरक, दर्दर, मगर, मत्स्य, कस्यप और कृष्णसर्प । राहुदेव का विमान पांच वर्णवाला है-कृष्ण, नील, रक्त, पीला और श्वेत । काला राहुविमान खंजन वर्ण की आभावाला है, नीला राहुविमान लीले तुंबडे के वर्ण का, रक्त राहुविमान मंजीठ
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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