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चन्द्रप्रज्ञप्ति-१३/-/११४
२२७ निवृद्धि इत्यादि । प्राभृत-१३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् अनुवाद पूर्ण
(प्राभृत-१४) [११५] हे भगवन् ! चंद्र का प्रकाश कब ज्यादा होता है ? शुक्ल पक्ष में ज्यादा होता है । कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष में ज्यादा प्रकाश होता है । कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष में आता हुआ चन्द्र ४४२ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के छेयालीश बासठांश भाग प्रकाश की क्रमशः वृद्धि करता है । शुक्लपक्ष की एकम में एक भाग की, दुजको दो भागकी...यावत्...पूर्णिमा को पन्द्रह भाग की प्रकाश में वृद्धि करता है, पूर्णिमा को पूर्ण प्रकाशित होता है । ज्योत्सना का यह प्रमाण परित संख्यातीत बताया है । शुक्ल पक्ष की अपेक्षा से कृष्ण पक्ष में ज्यादा अन्धकार होता है, शुक्लपक्ष के सम्बन्ध में जो कहा है वहीं गणित यहां भी समझ लेना । विशेष यह कि यहां क्रमशः अन्धकार की वृद्धि होती है और पन्द्रहवें दिन में अमावास्या के दिन संपूर्ण अन्धकार हो जाता है ।
(प्राभृत-१५) [११६] हे भगवन् ! इन ज्योतिष्को में शीघ्रगति कौन है ? चंद्र से सूर्य शीघ्रगति है, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्र से तारा शीघ्रगति होते है । सबसे अल्पगतिक चंद्र है और सबसे शीघ्रगति ताराए है । एक-एक मुहूर्त में गमन करता हुआ चंद्र, उन-उन मंडल सम्बन्धी परिधि के १७६८ भाग गमन करता हुआ मंडल के १०९८०० भाग करके गमन करता है । एक मुहूर्त में सूर्य उन-उन मंडल की परिधि के १८३० भागो में गमन करता हुआ उन मंडल के १०९८०० भाग छेद करके गति करता है । नक्षत्र १८३५ भाग करते हुए मंडल के १०९८०० भाग छेद करके गति करता है ।
[११७] जब चंद्र गति समापनक होता है, तब सूर्य भी गति समापनक होता है, उस समय सूर्य बासठ भाग अधिकता से गति करता है । इसी प्रकार से चंद्र से नक्षत्र की गति सडसठ भाग अधिक होती है, सूर्य से नक्षत्र की गति पांच भाग अधिक होती है । जब चंद्र गति समापनक होता है उस समय अभिजीत नक्षत्र जब गति करता है तो पूर्वदिशा से चन्द्र को नव मुहूर्त एवं दशवें मुहूर्त के सत्ताइस सडसठ्ठांश भाग मुहूर्त से योग करता है, फिर योग परिवर्तन करके उसको छोडता है । उसके बाद श्रवणनक्षत्र तीस मुहूर्त पर्यन्त चंद्र से योग करके अनुपरिवर्तित होता है, इस प्रकार इसी अभिलाप से पन्द्रह मुहूर्त-तीस मुहूर्त-पीस्तालीश मुहर्त को समझ लेना यावत् उत्तराषाढा ।
जब चंद्र गति समापन होता है तब ग्रह भी गति समापनक होकर पूर्व दिशा से यथा सम्भव चंद्र से योग करके अनुपरिवर्तित होते है यावत् जोग रहित होते है । इसी प्रकार सूर्य के साथ पूर्वदिशा से अभिजित नक्षत्र योग करके चार अहोरात्र एवं छह मुहूर्त साथ रहकर अनुपरिवर्तीत होता है, इसी प्रकार छ अहोरात्र एवं इक्कीस मुहूर्त, तेरह अहोरात्र एवं बारह मुहूर्त, बीस अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त को समझ लेना यावत् उत्तराषाढा नक्षत्र सूर्य के साथ बीस अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त तक योग करे अनुपरिवर्तित होता है । सूर्य का ग्रह के साथ योग