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चन्द्रप्रज्ञप्ति - २/१/३५
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को तिर्यक् करके पश्चिम लोकान्त में अप्काय में अदृश्य हो जाता है । (७) पूर्वदिग् लोकान्त से सूर्य प्रातःकाल में समुद्र में उदित होता है, वह सूर्य इस तिर्यक्लोक को तिर्यक् करके पश्चिम लोकान्त में शामको अपकाय में प्रवेश करता है, वहां से अधोलोक में जाकर पृथ्वी के दुसरे भाग में पूर्वदिग् लोकान्त में प्रभातकाल में अप्काय में उदित होता है । (८) पूर्वदिशा के लोकान्त से बहुत योजन- सेंकडो-हजारो योजन अत्यन्त दूर तक उंचे जाकर प्रभात का सूर्य आकाश में उदित होता है, वह सूर्य इस दक्षिणार्द्ध को प्रकाशित करता है, फिर दक्षिणार्ध में रात्रि होती है, पूर्वदिग् लोकान्त से बहुत योजन- सेंकडो-हजारो योजन उंचे जाकर प्रातः काल में आकाश में उदित होता है ।
भगवंत कहते है कि इस जंबूद्वीप में पूर्व-पश्चिम और उत्तरदक्षिण लम्बी जीवा से १२४ मंडल के विभाग करके दक्षिणपूर्व तथा उत्तरपश्चिम दिशा में मंडल के चतुर्थ भाग में रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसमरमणीय भू भाग से ८०० योजन उपर जाकर इस अवकाश प्रदेश में दो सूर्य उदित होते है । तब दक्षिणोत्तर में जम्बूद्वीप के भाग को तिर्यक् - प्रकाशीत करके पूर्वपश्चिम जंबूद्वीप के दो भागो में रात्रि करता है, और जब पूर्वपश्चिम के भागो को तिर्यक् करते है तब दक्षिण-उत्तर में रात्रि होती है । इस तरह इस जम्बूद्वीप के दक्षिण-उत्तर एवं पूर्वपश्चिम दोनो भागो को प्रकाशित करता है, जंबूद्वीप में पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण में १२४ विभाग करके दक्षिण - पूर्व और उत्तर-पश्चिम के चतुर्थ भाग मंडल में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के भूभाग से ८०० योजन उपर जाकर प्रभातकाल में दो सूर्य उदित होते है ।
प्राभृत- २ - प्राभृतप्राभृत- २
[३६] हे भगवन् ! एक मंडल से दुसरे मंडल में संक्रमण करता सूर्य कैसे गति करता है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियां है - ( 9 ) वह सूर्य भेदघात से संक्रमण करता है । (२) वह कर्णकला से गमन करता है । भगवंत कहते है कि जो भेदघात से संक्रमण बताते है उसमें यह दोष है कि भेदघात से संक्रमण करता सूर्य जिस अन्तर से एक मंडल से दुसरे मंडल में गमन करता है वह मार्ग में आगे नहीं जा शकता, दुसरे मंडल में पहुंचने से पहले ही उनका भोगकाल न्यून हो जाता है । जो यह कहते है कि सूर्य कर्णकला से संक्रमण करता है वह जिस अन्तर से एक मंडल से दुसरे मंडल में गति करता है तब जितनी कर्णकाल को छोडता है उतना मार्ग में आगे जाता है, इस मतमें यह विशेषता है कि आगे जाता हुआ सूर्य मंडलकाल को न्यून नहीं करता । एक मंडल से दुसरे मंडल में संक्रमण करता सूर्य कर्णकला से गति करता है यह बात नय गति से जानना ।
प्राभृत- २ - प्राभृतप्राभृत- ३
[३७] हे भगवन् ! कितने क्षेत्र में सूर्य एकएक मुहूर्त में गमन करता है ? इस विषय में चार प्रतिपत्तियां है । (१) सूर्य एक-एक मुहूर्त में छ-छ हजार योजन गमन करता है । (२) पांच-पांच हजार योजन बताता है । (३) चार-चार हजार योजन कहता है । ( ४ ) सूर्य एक-एक मुहूर्त में छह या पांच या चार हजार योजन गमन करता है ।
जो यह कहते है कि एक-एक मुहूर्त में सूर्य छ छ हजार योजन गति करते है उनके