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सूर्यप्रज्ञप्ति-२०/-/१९५
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प्रतिपत्तियां है-एक कहता है कि-राहु नामक देव चंद्र-सूर्य को ग्रसित करता है, दुसरा कहता है कि राहुनामक कोइ देव विशेष है ही नहीं जो चंद्र-सूर्य को ग्रसित करता है । पहले मतवाला का कथन यह है कि-चंद्र या सूर्य को ग्रहण करता हुआ राहु कभी अधोभाग को ग्रहण करके अधोभाग से ही छोड़ देता है, उपर से ग्रहण करके अधो भाग से छोडता है, कभी उपर से ग्रहण करके उपर से ही छोड़ देता है, दायिनी ओर से ग्रहण करके दायिनी ओर से छोडता है तो कभी बायीं तरफ से ग्रहण करके बांयी तरफ से छोड देता है इत्यादि ।
जो मतवादी यह कहता है कि राहु द्वारा चंद्र-सूर्य ग्रसित होते ही नहीं, उनके मतानुसारपन्द्रह प्रकार के कृष्णवर्णवाले पुद्गल है-श्रृगांटक, जटिलक, क्षारक, क्षत, अंजन, खंजन, शीतल, हिमशीतल, कैलास, अरुणाभ, परिजय, नभसूर्य, कपिल और पिंगल राहु । जब यह पन्द्रह समस्त पुद्गल सदा चंद्र या सूर्य की लेश्या को अनुबद्ध करके भ्रमण करते है तब मनुष्य यह कहते है कि राहु ने चंद्र या सूर्य को ग्रसित किया है । जब यह पुद्गल सूर्य या चंद्र की लेश्या को ग्रसित नहीं करते हुए भ्रमण करते है तब मनुष्य कहते है कि सूर्य या चंद्र द्वारा राहु ग्रसित हुआ है ।
भगवंत फरमाते है कि राहुदेव महाऋद्धिवाला यावत् उत्तम आभरणधारी है, राहुदेव के नव नाम है-श्रृंगाटक, जटिलक, क्षतक, क्षरक, दर्दर, मगर, मत्स्य, कस्यप और कृष्णसर्प । राहुदेव का विमान पांच वर्णवाला है-कृष्ण, नील, रक्त, पीला और श्वेत । काला राहुविमान खंजन वर्ण की आभावाला है, नीला राहुविमान लीले तुंबडे के वर्ण का, रक्त राहुविमान मंजीठ वर्ण की आभावाला, पीला विमान हलदर की आभावाला और श्वेत राहुविमान तेजपुंज सदृश होता है ।
जिस वक्त राहुदेव विमान आते-जाते-विकुर्वणा करते-परिचारणा करते चंद्र या सूर्य की लेश्या को पूर्व से आवरित करके पश्चिम में छोडता है, तब पूर्व से चंद्र या सूर्य दिखते है और पश्चिम में राहु दिखाई देता है, जब दक्षिण से आवरित करके उत्तर में छोडता है, तब दक्षिण से चंद्र-सूर्य दिखाइ देते है और उत्तर में राहु दिखाई देता है । इसी अभिलाप से इसी प्रकार पश्चिम, उत्तर, इशान, अग्नि, नैऋत्य और वायव्य में भी समझलेना चाहिए । इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करता है, तब मनुष्य कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य का ग्रहण किया-ग्रहण किया । जब इस तरह राहु एक पार्श्व से चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य की कुक्षिका विदारण किया-विदारण किया । जब राहु इस तरह चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करके छोड देता है, तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य का वमन किया-वमन किया । इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य लेश्या को आवरीत करके बीचोबीच से निकलता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य को मध्य से विदारीत किया है । इसी तरह जब राहु चारो ओर से चंद्र या सूर्य को आवरीत करता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र-सूर्य को ग्रसित किया ।
राहु दो प्रकार के है-ध्रुवराहु और पर्वराहु । जो ध्रुवराहु है, वह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ करके अपने पन्द्रहवे भाग से चंद्र की पन्द्रहवा भाग की लेश्या को एक एक दिन के क्रमसे आच्छादित करता है और पूर्णिमा एवं अमावास्या के पर्वकाल में क्रमानुसार चंद्र या सूर्य को ग्रसित करता है; जो पर्वराहु है वह जघन्य से छह मास में और उत्कृष्ट से बयालीस