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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मुहूर्त उपपात से विरहित कहे हैं ।
भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक । ज्योतिष्क देव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त उपपात विरहित कहे हैं ।
भगवन् ! सौधर्मकल्प में देव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त । इशानकल्प में यही काल जानना । सनत्कुमार देवों का उपपातविरहकाल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट नौ रात्रि दिन और बीस मुहूर्त है । माहेन्द्र देवों का उपपातविरहितकाल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट बारह रात्रिदिन और दस मुहूर्त है । ब्रह्मलोक देव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट साढ़े बाईस रात्रिदिन उपपातविरहित रहते हैं । लान्तक देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट पैंतालीस रात्रिदिन है । महाशुक्र देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट अस्सी रात्रिदिन है । सहस्रार देवों का उपपातविरहकाल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट सौ रात्रिदिन है । आनतदेव का उपपातविरह काल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात मास है । प्राणतदेव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात मास उपपात विरहित हैं । आरणदेवो का उपपातविरह काल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात वर्ष है । अच्युतदेव का उपपातविरह काल जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात वर्ष है ।
भगवन् ! अधस्तन ग्रैवेयक देव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात सौ वर्ष तक । मध्यम ग्रैवेयकदेव जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष उपपातविरहित कहे हैं । ऊपरी ग्रैवेयक देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट संख्यातलाख वर्ष है । विजय, वैजयन्त, जयन्त
और अपराजित देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट असंख्यातकाल है । सर्वार्थसिद्ध देवों का उपपातविरह जघन्य एक समय उत्कृष्ट पल्योपम का संख्यातवां भाग है।
भगवन् ! सिद्ध जीवों का उपपात-विरह कितने काल है ? जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट छह मास ।
(३२९] भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक कितने काल तक उद्धर्त्तना विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त । उपपात-विरह समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक कहना । विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के निरूपण में 'च्यवन' शब्द कहना ।
[३३०] भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? गौतम ! दोनों । इसी तरह तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, देव, नैरयिक, असुरकुमारादिभवनपति, ये सब सान्तर और निरन्तर उत्पन्न होते है । पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक सब निरन्तर ही उत्पन्न होते है। द्वीन्द्रिय यावत् सवार्थसिद्ध देव तक सब सान्तर और निस्तर भी उत्पन्न होते है ।
[३३१] भगवन् ! नैरयिक सान्तर उद्धर्तन करते हैं अथवा निरन्तर उद्धर्तन करते हैं ? गौतम ! वे सान्तर भी उद्धर्तन करते हैं और निरन्तर भी, उपपात के कथन अनुसार सिद्धों को छोड़कर उद्धर्तना में भी वैमानिकों तक कहना ।
[३३२] भगवन् ! एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक,