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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
करते है । तथा
[१५८] इसमें ११६१६ महाग्रह तथा ३६९६ नक्षत्र है । [१५९] इसमें ८८४०७०० कोडाकोडी तारागण है ।
[१६०] मनुष्यलोक में पूर्वोक्त तारागण है और मनुष्यलोक के बाहर असंख्यात तारागण जिनेश्वर भगवंतने प्रतिपादित किये है।
[१६१] मनुष्यलोक में स्थित तारागण का संस्थान कलंबपुष्प के समान बताया है ।
१६२] सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और तारागण मनुष्यलोक में प्ररूपित किये है, उसके नामगोत्र प्राकृत पुरुपोने बताए नहीं है ।
[१६३] दो चंद्र और दो सूर्य की एक पिटक होती है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में कही गई है ।
[१६४] एक एक पिटक में छप्पन्न नक्षत्र होते है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में बताइ गई है।
१६५] एक एक पिटक में १७६ ग्रह होते है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्य लोक में फरमाते है ।
१६६] दो सूर्य और दो चंद्र की ऐसी चार पंक्तियां होती है, मनुष्य लोक में ऐसी छासठ-छासठ पंक्तियां होती है ।
[१६७] छप्पन नक्षत्र की एक पंक्ति, ऐसी छासठ-छासठ पंक्ति मनुष्यलोक में होती है।
[१६८] १७६ ग्रह की एक पंक्ति ऐसी छासठ-छासठ पंक्ति मनुष्यलोक में होती है ।
[१६९] चंद्र, सूर्य, ग्रहगण अनवस्थित योगवाले है और ये सब मेरुपर्वत को प्रदक्षिणावर्त से भ्रमण करते है ।
१७०] नक्षत्र और तारागण अवस्थित मंडलवाले है, वे भी प्रदक्षिणावर्त से मेरुपर्वत का भ्रमण करते है ।
[१७१] सूर्य और चंद्र का उर्ध्व या अधो में संक्रमण नहीं होता, वे मंडल में सर्वाभ्यन्तर-सर्वबाह्य और तीर्छ संक्रमण करते है ।
[१७२] सूर्य, चंद्र, नक्षत्र और महाग्रह के भ्रमण विशेष से मनुष्य के सुख-दुःख होते है।
[१७३] सूर्य-चंद्र के सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश के समय नित्य तापक्षेत्र की वृद्धि होती है और उनके निष्क्रमण से क्रमशः तापक्षेत्र में हानि होती है ।
[१७४] सूर्य-चंद्र का तापक्षेत्र मार्ग कलंबपुष्प के समान है, अंदर से संकुचित और बाहर से विस्तृत होता है ।
[१७५] चंद्र की वृद्धि और हानि कैसे होती है ? चंद्र किस अनुभाव से कृष्ण या प्रकाशवाला होता है।
[१७६] कृष्णराहु का विमान अविरहित-नित्य चंद्र के साथ होता है, वह चंद्र विमान से चार अंगुल नीचे विचरण करता है ।
(१७७] शुक्लपक्ष में जब चंद्र की वृद्धि होती है, तब.एक एक दिवस में बासठ-बासठ