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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय है, विशाखादि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय है और श्रवणादि सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय है ।
भगवंत फरमाते है कि अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा और रेवती ये सात पूर्वद्वारीय है; अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा और पुनर्वसू ये सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय है; पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त और चित्रा ये सात नक्षत्र, पश्चिमद्वारीय है; स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा ये सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय है ।
| प्राभृत-१०-प्राभृतप्राभृत-२२] [८७] हे भगवन् ! नक्षत्रविचय किस प्रकार से कहा है ? यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप-समुद्रो के ठीक बीच में यावत् घीरा हुआ है । इस जंबूद्वीप में दो चन्द्र प्रकाशित हुए थे, होते है
और होंगे; दो सूर्य तपे थे, तपते है और तपेंगे; छप्पन नक्षत्रोने योग किया था, करते है और करेंगे-वह नक्षत्र इस प्रकार है-दो अभिजीत्, दो श्रवण, दो घनिष्ठा...यावत्...दो उत्तराषाढा । इन छप्पन नक्षत्रो में दो अभिजीत् नक्षत्र ऐसे है जो चन्द्र के साथ नवमुहूर्त एवं एक मुहूर्तमें सत्ताईस सडसठ्ठांश भाग से योग करते है, चन्द्र के साथ पन्द्रह मुहूर्त से योग करनेवाले नक्षत्र बारह है-दो उत्तराभाद्रपदा, दो रोहिणी, दो पुनर्वसू, दो उत्तराफाल्गुनी, दो विशाखा और दो उत्तराषाढा ।
तीसमुहूर्त से चन्द्र के साथ योग करनेवाले तीस नक्षत्र है । श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगशिर्ष, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल
और पूर्वाषाढा ये सब दो-दो । पीस्तालीश मुहूर्त से चन्द्र के साथ योग करनेवाले नक्षत्र बारह है । दो उत्तराभाद्रपद, दो रोहिणी, दो पुनर्वसू, दो उत्तराफाल्गुनी, दो विशाखा और दो उत्तराषाढा।
सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छ मुहर्त्त से योग करनेवाले नक्षत्र दो अभिजीत है; बारह नक्षत्र सूर्य के साथ छ अहोरात्र एवं इक्कीश मुहूर्त से योग करते है-दो शतभिषा, दो भरणी, दो आर्द्रा, दो अश्लेपा, दो स्वाति और दो ज्येष्ठा । तीश नक्षत्र सूर्य के साथ तेरह अहोरात्र एवं बारह मुहूर्त से योग करते है-दो श्रवण यावत् दो पूर्वाषाढा; बारह नक्षत्र सूर्य से बीस अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त से योग करते है । दो उत्तरा भाद्रपद यावत् दो उत्तराषाढा ।
[८८] हे भगवन् ! सीमाविष्कंभ किस प्रकार से है ? इन छप्पन नक्षत्रो में दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे है जिसका सीमाविष्कम्भ ६३० भाग एवं त्रीश सडसठ्ठांश भाग है; बारह नक्षत्र का १००५ एवं त्रीश सडसठ्ठांश भाग सीमा विष्कम्भ है-दो शतभिषा यावत् दो ज्येष्ठा; तीस नक्षत्र का सीमाविष्कंभ २०१० एवं तीश सडसट्ठांश भाग है-दो श्रवण यावत् दो पूर्वाषाढा, बारहनक्षत्र ३०१५ एवं तीश सडसट्ठांश भाग सीमा विष्कम्भ से है-दो उत्तरा भाद्रपदा यावत् दो उत्तराषाढा ।
[८९] इन छप्पन नक्षत्रो में ऐसे कोइ नक्षत्र नहीं है जो सदा प्रातःकाल में चन्द्र से योग करके रहते है । सदा सायंकाल और सदा उभयकाल चन्द्र से योग करके रहनेवाला भी कोइ नक्षत्र नहीं है । केवल दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे है जो चुंवालीसमी-चुंवालीसमी अमावास्या में निश्चितरूप से प्रातःकाल में चन्द्र से योग करते है, पूर्णिमा में नहीं करते ।