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सूर्यप्रज्ञप्ति-१०/४/४६
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में एक दिन तक चन्द्रमा के साथ योग करके अनुपरिवर्तित होता है तथा शामको शतभिषा के साथ चन्द्र को समर्पित करता है । शतभिपानक्षत्र रात्रिगत तथा अर्द्धक्षेत्र होता है वह पन्द्रह मुहूर्त तक अर्थात् एक रात्रि चन्द्र के साथ योग करके रहता है और सुबह में पूर्व प्रौष्ठपदा को चंद्र से समर्पित करके अनुपरिवर्तन करता है ।
पूर्वप्रौष्ठपदा नक्षत्र पूर्वभाग-समक्षेत्र और तीश मुहूर्त का होता है, वह एक दिन और एकरात्रि चन्द्र के साथ योग करके प्रातः उत्तराप्रौष्ठपदा को चन्द्र से समर्पित करके अनुपरिवर्तन करता है । उत्तराप्रौष्ठपदा नक्षत्र उभयभागा-देढ क्षेत्र और पंचचत्तालीश मुहूर्त का होता है, प्रातःकाल में वह चन्द्रमां के साथ योग करता है, एक दिन-एक रात और दुसरा दिन चन्द्रमां के साथ व्याप्त रहकर शामको रेवती नक्षत्र के साथ चन्द्र को समर्पित करके अनुपरिवर्तित होता है । रेवतीनक्षत्र पश्चात्भागा-समक्षेत्र और तीश मुहर्तप्रमाण होता है, शामको चन्द्र के साथ योग करके एकरात और एकदिन तक साथ रहकर, शाम को अश्विनी नक्षत्र के साथ चन्द्र को समर्पण करके अनुपरिवर्तित होता है । अश्विनी नक्षत्र भी पश्चात्भागा-समक्षेत्र और तीश मुहूर्त्तवाला है, शाम को चन्द्रमां के साथ योग करके एक रात्रि और दुसरे दिन तक व्याप्त रहकर, चन्द्र को भरणी नक्षत्र से समर्पित करके अनुपरिवर्तन करता है ।
भरणी नक्षत्र रात्रिभागा-अर्द्धक्षेत्र और पन्द्रह मुहूर्त का है, वह शामको चन्द्रमा से योग करके एक रात्रि तक साथ रहता है, कृतिका नक्षत्र पूर्वभागा-समक्षेत्र और तीश मुहूर्त का है, वह प्रातःकाल में चन्द्र के साथ योग करके एक दिन और एक रात्रि तक साथ रहता है, प्रातःकाल में रोहिणी नक्षत्र को चंद्र से समर्पित करता है । रोहिणी को उत्तराभाद्रपद के समान, मृगशिर को घनिष्ठा के समान, आर्द्रा को शतभिषा के समान, पूनर्वसू को उत्तराभाद्रपद के समान, पुष्य को घनिष्ठा के समान, अश्लेषा को शतभिषा के समान, मघा को पूर्वा फाल्गुनी के समान, उत्तरा फाल्गुनी को उत्तराभाद्रपद के समान, अनुराधा को ज्येष्ठा के समान, मूल और पूर्वाषाढा को पूर्वाभाद्रपद समान, उत्तराषाढा को उत्तराभाद्रपद के समान इत्यादि समझलेना।
| प्राभृत-१०-प्राभृतप्राभृत-५ | [४७] कुल आदि नक्षत्र किस प्रकार कहे है .? बारह नक्षत्र कुल संज्ञक है-घनिष्ठा, उत्तराभाद्रपदा, अश्विनी, कृतिका, मृगशीर्ष, पुष्य, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल
और उत्तराषाढा । बारह नक्षत्र उपकुल संज्ञक कहे है-फाल्गुनी, श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसू, अश्लेपा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा और पूर्वाषाढा । चार नक्षत्र कुलोपकुल संज्ञक है-अभिजीत, शतभिषा, आर्द्रा और अनुराधा ।
| प्राभृत-१०-प्राभृतप्राभृत-६ | [४८] हे भगवत् ! पूर्णिमा कौन सी है ? बारह पूर्णिमा और बारह अमावास्या कही है । बारह पूर्णिमा इस प्रकार है-श्राविठी, प्रौष्ठपदी, आसोजी, कार्तिकी, मृगशिर्षी, पौषी, माघी, फाल्गुनी, चैत्री, वैशाखी, ज्येष्ठामूली और आषाढी । अब कौनसी पूनम किन नक्षत्रो से योग करती है यह बताते है-श्राविष्ठी पूर्णिमा-अभिजीत्, श्रवण और घनिष्ठा से, प्रौष्ठपदी पूर्णिमा-शतभिषा, पूर्वाप्रौष्ठपदा और उत्तराप्रोष्ठपदा से, आसोयुजीपूर्णिमा-रेवती और अश्विनी से, कार्तिकीपूर्णिमा-भरणी और कृतिका से, मृगशिर्षीपूर्णिमा-रोहिणी और मृगशिर्ष से, पौषीपूर्णिमा