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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
कालसमय में प्रथम अयन समाप्त होता है ।
अयन के कथनानुसार संवत्सर, युग, शतवर्ष यावत् सागरोपम काल में भी समझलेना। जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्सर्पिणी होती है तब उत्तरार्द्ध में भी उत्सर्पिणी होती है, जब उत्तरार्द्ध में उत्सर्पिणी होती है तब मेरुपर्वत के पूर्व-पश्चिम में उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी नहीं होती है क्योंकि-वहां अवस्थित काल होता है । इसी तरह अवसर्पिणी भी जान लेना । लवणसमुद्र - धातकीखण्डद्वीप-कालोदसमुद्र एवं अभ्यन्तर पुष्करवरार्द्धद्वीप इन सबका समस्त कथन जंबूद्वीप के समान ही समझ लेना, विशेष यह कि जंबूद्वीप के स्थान पर स्व-स्व द्वीप समुद्र को कहना ।
(प्राभृत-९) [४०] कितने प्रमाणयुक्त पुरुषछाया से सूर्य परिभ्रमण करता है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियां है । एक मतवादी यह कहता है कि जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है वही पुद्गल उससे संतापित होते है । संतप्यमान पुद्गल तदनन्तर बाह्य पुद्गलो को संतापित करता है । यही वह समित तापक्षेत्र है । दुसरा कोइ कहता है कि-जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है, वह पुद्गल संतापित नहीं होते, वह असंतप्यमान पुद्गल से अनन्तर पुद्गल भी संतापित नहीं होते, यहीं है वह समित तापक्षेत्र । तीसरा कोइ यह कहता है कि जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है, उनमें से कितनेक पुद्गल संतप्त होते है और कितनेक नहीं होते । जो संतप्त हुए है वे पुद्गल अनन्तर बाह्य पुद्गलो में से किसीको संतापित करते है और किसीको नहीं करते, यहीं है वो समित तापक्षेत्र ।
भगवंत फरमाते है कि-जो ये चन्द्र-सूर्य के विमानो से लेश्या निकलती है वह बहार के यथोचित आकाशक्षेत्र को प्रकाशीत करती है, उन लेश्या के पीछे अन्य छिन्न लेश्याए होती है, वह छिन्नलेश्याए बाह्य पुद्गलो को संतापित करती है, यहीं है उसका समित अर्थात् उत्पन्न हुआ तापक्षेत्र ।
[४१] कितने प्रमाणवाली पौरुषी छाया को सूर्य निवर्तित करता है ? इस विषय में पच्चीश प्रतिपत्तियां है-जो छठे प्राभृत के समान समझलेना । जैसे कि कोई कहता है कि अनुसमय में सूर्य पौरुषि छाया को उत्पन्न करता है, इत्यादि । भगवंत फरमाते है कि सूर्य से उत्पन्न लेश्या के सम्ब्ध में यथार्थतया जानकर मैं छायोद्देश कहता हुं । इस विषय में दो प्रतिपत्तियां है । एक कहता है कि-ऐसा भी दिन होता है जिसमें सूर्य चार पुरुष प्रमाण छाया को उत्पन्न करता है और ऐसा भी दिन होता है जिसमें दो पुरुष प्रमाण छाया को उत्पन्न करता है । दुसरा कहता है कि दो प्रकार दिन होते है - एक जिसमें सूर्य दो पुरुष प्रमाण छाया उत्पन्न करता है, दुसरा-जिसमें पौरुषीछाया उत्पन्न ही नहीं होती ।
जो यह कहते है कि सूर्य चार पुरुषछाया भी उत्पन्न करता है और दो पुरुष छाया भीउस मतानुसार. - सूर्य जब सर्वाभ्यन्तर मंडल को संक्रमण करके गमन करता है तब उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त प्रमाण दिन और जघन्या बारह मुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है, उस दिन सूर्य चार पौरुषीछाया उत्पन्न करता है । उदय और अस्तकाल में लेश्या की वृद्धि करके वहीं सूर्य जब सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है, उत्कृष्टा अट्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का