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________________ १६० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद हुआ, एक एक अहोरात्र में एक एक भाग प्रमाण दिवस क्षेत्र को न्यून करता और रात्रिक्षेत्र को बढाता हुआ सर्वबाह्य मंडल में उपसंक्रमण करके गमन करता है । १८३ अहोरात्र में १८३ भाग प्रमाण दिवस क्षेत्र को कम करता है और उतना ही रात्रि क्षेत्र में वृद्धि करता है । उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है। यह हुए प्रथम छ मास । दुसरे छ मासका आरंभ होता है तब सूर्य सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश करने का आरंभ करते है । प्रवेश करता हुआ सूर्य जब अनन्तर मंडल में उपसंक्रमण करके गमन करता है तब एक अहोरात्र में अपने प्रकाश से रात्रि क्षेत्र का एक भाग कम करता है और दिवस क्षेत्र के एक भाग की वृद्धि करता है । १८३० भाग से छेद करता है । दो एकसठ्ठांश मुहूर्त से रात्रि की हानि और दिन की वृद्धि होती है । इसी प्रकार से पूर्वोक्त पद्धति से उपसंक्रमण करता हुआ सर्वाभ्यन्तर मंडल में पहुंचता है तब १८३० भाग से छेद कर और एक एक महोरात्र में दिवस क्षेत्र की वृद्धि और रात्रिक्षेत्र की हानि करता हुआ १८३ अहोरात्र होते है । सर्वाभ्यन्तर मंडल में गमन करता है तब उत्कृष्ट मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । यह हुए दुसरे छ मास यावत् आदित्यसंवत्सर का पर्यवसान । प्राभृत-७ [३८] सूर्य का वरण कौन करता है ? इस विषय में बीस प्रतिपत्तिया है । एक कहता है मंदर पर्वत सूर्य का वरण करता है, दुसरा कहता है कि मेरु पर्वत वरण करता है यावत् बीसवां कहता है कि पर्वतराज पर्वत सूर्य का वरण करता है । ( प्राभृत- ५ - के समान समस्त कथन समझ लेना ।) भगवंत फरमाते है कि मंदर पर्वत से लेकर पर्वतराज पर्वत सूर्य का वरण करता है, जो पुद्गल सूर्य की लेश्या को स्पर्श करते है वे सभी सूर्य का वरण करते है । अदृष्ट एवं चरमलेश्यान्तर्गत् पुद्गल भी सूर्य का वरण करते है । प्राभृत- ७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण प्राभृत-८ [३९] सूर्य की उदय संस्थिति कैसी है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियां है । एक परमतवादी कहता है कि जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में अठ्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाण दिन होता है । जब उत्तरार्द्ध में अठ्ठारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी अठ्ठारह मुहूर्त का दिन होता है । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में सत्तरह मुहूर्त्त प्रमाण दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी सत्तरह मुहूर्त का दिन होता है इसी तरह उत्तरार्द्ध में सत्तरह मुहूर्त्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी समझना । इसी प्रकार से एकएक मुहूर्त की हानि करते-करते सोलह-पन्द्रह यावत् बारह मुहूर्त्त प्रमाण जानना । जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में बारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी बारह मुहूर्त का दिन होता है और उत्तरार्द्ध में बारह मुहूर्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी बारह मुहूर्त का दिन होता है । उस समय जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम में हमेशा पन्द्रह मुहूर्त का दिन और पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि अवस्थित रहती है । कोइ दुसरा कहता है कि जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में जब अठ्ठारह मुहूर्त्तान्तर दिन होता
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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