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प्रज्ञापना-३६/-/६१०
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हैं, उनसे मायासमुद्घाती विशेषाधिक हैं और उनसे लोभसमुद्घाती विशेषाधिक हैं तथा इन सबसे असमवहत पृथ्वीकायिक संख्यातगुणा हैं । इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्च में जानना । मनुष्यों समुच्चय जीवों के समान है । विशेष यह कि मानसमुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यात-गुणा हैं ।
[६११] भगवन् ! छानस्थिकमसमुद्घात कितने हैं ? गौतम ! छह, -वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात, तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घात। नारकों में कितने छाद्यस्थिकसमुद्घात हैं ? गौतम ! चार, -वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, माग्णान्तिकसमुद्घात और वैक्रियसमुद्घात । असुरकुमारों में पांच छानस्थिकसमुद्घात हैं यथावदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात और तैजससमुद्घात । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में गौतम ! तीन समुद्धात हैं, -वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात । किन्तु वायुकायिक जीवों में चार हैं, -वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और वैक्रियसमुद्घात । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में पांच छाद्यस्थिकसमुद्घात हैं, -वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात और तैजससमुद्घात। भगवन् ! मनुष्यों में कितने छाद्मस्थिकसमुद्धात कहे हैं ? गौतम ! छह, वेदना-यावत् आहारकसमुद्घात ।
[६१२] भगवन् ! वेदनासमुद्धात से समवहत हुआ जीव समवहत होकर जिन पुद्गलों को निकालता है, भंते ! उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र परिपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विस्तार और स्थूलता की अपेक्षा शरीरप्रमाण क्षेत्र को नियम से छहों दिशाओं में व्याप्त करता है । इतना क्षेत्र आपूर्ण और इतना ही क्षेत्र स्पृष्ट होता है । वह क्षेत्र कितने काल में आपूर्ण और स्पृष्ट हुआ ? गौतम ! एक समय, दो समय अथवा तीन समय के विग्रह में आपूर्ण हुआ और स्पृष्ट होता है । उन पुद्गलों को कितने काल में निकालता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त में । वे बाहर निकले हुए पुद्गल वहाँ (स्थित) जिन प्राण, भूत, जीव
और सत्त्वों का अभिघात करते हैं, आवर्तपतित करते हैं, थोड़ा-सा छूते हैं, संघात करते हैं, संघट्टित करते हैं, परिताप पहुँचाते हैं, मूर्च्छित करते हैं और घात करते हैं, हे भगवन् ! इनसे वह जीव कितनी क्रियावाला होता है ? गौतम ! वह कदाचित् तीन, चार और कदाचित् पांच । वे जीव उस जीव से कितनी क्रिया वाले होते हैं ? गौतम ! वे कदाचित् तीन, चार और कदाचित् पांच क्रिया वाले । भगवन् ! वह जीव और वे जीव अन्य जीवों का परम्परा से धात करने से कितनी क्रिया वाले होते हैं ? गौतम ! तीन क्रिया, चार क्रिया अथवा पांच क्रिया वाले भी होते हैं ।
. भगवन् ! वेदनासमुद्घात से समवहत हुआ नारक समवहत होकर जिन पुद्गलों को निकालता है, उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! समुच्चय जीव के समान कहना । समुच्चय जीव के समान ही वैमानिक पर्यन्त कहना । इसी प्रकार कषायसमुद्घात को भी कहना ।
[६१३] भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात के द्वारा समवहत हुआ जीव, समवहत होकर जिन पुद्गलों को आत्मप्रदेशों से पृथक् करता है, उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विस्तार और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाण क्षेत्र तथा लम्बाई में