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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़ कर तैजस और कार्मणशरीरी में तीन भंग हैं । अशरीरी जीव और सिद्ध अनाहारक होते हैं ।
[५७१] आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास तथा भाषा-मनःपर्याप्ति इन पर्याप्तियों से पर्याप्त जीवों और मनुष्यों में तीन-तीन भंग होते हैं । शेष जीव आहारक होते हैं । विशेष यह कि भाषा-मनःपर्याप्ति पंचेन्द्रिय जीवों में हो पाई जाती है । आहारपर्याप्ति से अपर्याप्त जीव अनाहारक होते हैं । शरीरपर्याप्ति से अपर्याप्त जीव कदाचित् आहारक, कदाचित् अनाहारक होता है । आगे की चार अपर्याप्तियों वाले नारकों, देवों और मनुष्यों में छह भंग पाये जाते हैं । शेष में समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़ कर तीन भंग हैं । भाषा-मनःपर्याप्ति से अपर्याप्त समुच्चय जीवों और पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में तीन भंग पाये जाते हैं । नैरयिकों, देवों और मनुष्यों में छह भंग हैं । सभी पदों में जीवादि दण्डकों में जिस दण्डक में जो पद संभव हो, उसी की पृच्छा करना । यावत् भाषा-मनःपर्याप्ति से अपर्याप्त नारकों, देवों और मनुष्यों में छह भंगों तथा नारकों, देवों और मनुष्यों से भिन्न समुच्चय जीवों और पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में तीन भंगों की वक्तव्यतापर्यन्त समझना ।
पद-२८-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
( पद-२९-"उपयोग" ) [५७२] भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का, -साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! आठ प्रकार का, आभिनिबोधिक-ज्ञानसाकारोपयोग, श्रुतज्ञान०, अवधिज्ञान०, मनःपर्यवज्ञान० और केवलज्ञान-साकारोपयोग, मति-अज्ञान०, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान-साकारोपयोग । अनाकारोपयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, -चक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग, अचक्षुदर्शन०, अवधिदर्शन० और केवलदर्शन-अनाकारोपयोग । इसी प्रकार समुच्चय जीवों को भी जानना ।
भगवन् ! नैरयिकों का उपयोग कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का, - साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । नैरयिकों का साकारोपयोग छह प्रकार का है । –मतिज्ञानसाकारोपयोग, श्रुतज्ञान०, अवधिज्ञान०, मति-अज्ञान०, श्रुत-अज्ञान० और विभंगज्ञानसाकारोपयोग । नैरयिकों का अनाकारोपयोग तीन प्रकार का है । चक्षुदर्शनअनाकारोपयोग, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन-अनाकारोपयोग । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना ।
पृथ्वीकायिक जीवों के उपयोग-सम्बन्धी प्रश्न । गौतम ! उनका उपयोग दो प्रकार का है, -साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । पृथ्वीकायिक जीवों का साकारोपयोग दो प्रकार का है, –मति-अज्ञान और श्रुतअज्ञान । पृथ्वीकायिक जीवों का अनाकारोपयोग एकमात्र अचक्षुदर्शन है । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना । द्वीन्द्रिय जीवों का उपयोग ? दो प्रकार का है, -साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । द्वीन्द्रिय जीवों का साकारोपयोग चार प्रकार का है । -आभिनिबोधिकज्ञान-साकारोपयोग, श्रुतज्ञान०, मति-अज्ञान० और श्रुतअज्ञान-साकारोपयोग । द्वीन्द्रिय जीवों का अनाकारोपयोग एक अचक्षुदर्शन ही है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय को कहना । चतुरिन्द्रिय में भी इसी प्रकार कहना । किन्तु उनका अनाकारोपयोग दो