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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[५६०] भगवन् ! भवसिद्धिक जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक होता है, कदाचित् अनाहारक । इसी प्रकार वैमानिक तक जानना । भगवन् ! (बहुत) भवसिद्धिक जीव आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम ! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना । अभवसिद्धिक में भी इसी प्रकार कहना । नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक अनाहारक होता है । इसी प्रकार सिद्ध में कहना । ( बहुत-से ) नो-भवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव अनाहारक होते हैं । इसी प्रकार बहुत से सिद्धों में
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समझना ।
[ ५६१] भगवन् ! संज्ञी जीव आहारक है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना । किन्तु एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के विषय में प्रश्न नहीं करना । बहुत-से संज्ञी जीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? गौतम ! जीवादि से लेकर वैमानिक तक तीन भंग होते हैं। असंज्ञी जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है । इसी प्रकार नारक से वाणव्यन्तर पर्यन्त कहना । ज्योतिष्क और वैमानिक के विषय में प्रश्न नहीं करना । (बहुत) असंज्ञी जीव आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी । इनमें केवल एक ही भंग है । (बहुत) असंज्ञी नैरयिक आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? गौतम - ( १ ) सभी आहारक होते हैं, (२) सभी अनाहारक होते हैं । (३) एक आहारक और एक अनाहारक, (४) एक आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं, (५) बहुत आहारक और एक अनाहारक होता है तथा (६) बहुत आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना । एकेन्द्रिय जीवों में भंग नहीं होता । द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तक में पूर्वोक्त कथन के समान तीन भंग कहना मनुष्यों और वाणव्यन्तर देवों में (पूर्ववत्) छह भंग कहना । नोसंज्ञी - नो असंज्ञी जीव कदाचित् आहारक और कदाचित अनाहारक होता है । इसी प्रकार मनुष्य में भी कहना । सिद्ध जीव अनाहारक होता है । बहुत्व की अपेक्षा से नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी जीव आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी और मनुष्यों में तीन भंग हैं । ( बहुत-से ) सिद्ध अनाहारक होते हैं ।
[५६२ ] भगवन् ! सलेश्य जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है । इसी प्रकार वैमानिक तक जानना । भगवन् ! (बहुत) सलेश्य जीव आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम ! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर इनके तीन भंग हैं । इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोतलेश्यी में भी समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहना । तेजोलेश्या की अपेक्षा से पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिकों में छह भंग है । शेष जीव आदि में, जिनमें तेजोलेश्या पाई जाती है, उसमें तीन भंग कहना । पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या वाले जीव आदि में तीन भंग हैं । अलेश्य समुच्चय जीव (अयोगी केवली) मनुष्य और सिद्ध अनाहारक ही होते हैं । [५६३] भगवन् ! सम्यग्दृष्टि जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में पूर्वोक्त छह भंग होते हैं । सिद्ध अनाहारक होते हैं । शेष सभी में तीन भंग होते हैं । मिथ्यादृष्टियों में समुच्चय जीव और एकेन्द्रियों को छोड़ कर तीन-तीन भंग पाये जाते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि