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प्रज्ञापना-२३/२/५४५
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भगवन् ! किस प्रकार का नारक उत्कृष्ट स्थितिवाला ज्ञानावरणीयकर्म बांधता है ? गौतम ! जो संज्ञीपंचेन्द्रिय, समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोग वाला, जाग्रत, श्रुत में उपयोगवान्, मिथ्यादृष्टि, कृष्णलेश्यावान्, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणामवाला अथवा किञ्चित् मध्यम परिणाम वाला हो, ऐसा नारक बांधता है । भगवन् ! किस प्रकार का तिर्यश्च उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता है ? गौतम ! जो कर्मभूमि में उत्पन्न अथवा कर्मभूमिज सदृश हो, संज्ञीपंचेन्द्रिय, यावत् किञ्चित् मध्यम परिणामवाला हो, ऐसा तिर्यञ्च बांधता है । इसी प्रकार की तिर्यञ्चिनी, मनुष्य और मनुष्यस्त्रीं भी उत्कृष्ट स्थितिवाले ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते है । देव-देवी को नारक के सदृश जानना | आयुष्य को छोड़कर शेष सात कर्मों के विषय में पूर्ववत् जानना ।
भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले आयुष्यकर्म को क्या नैरयिक बांधता है, यावत् देवी बांधती है ? गौतम ! उसे तिर्यञ्च, मनुष्य तथा मनुष्य स्त्री बांधती है । भगवन् ! किस प्रकार का तिर्यञ्च उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध समान जानना । भगवन् ! किस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है ? गौतम ! जो कर्मभूमिज हो अथवा कर्मभूमिज के सदृश हो यावत् श्रुत में उपयोगवाला हो, सम्यग्दृष्टि हो अथवा मिथ्यादृष्टि हो, कृष्णलेश्यी हो या शुक्ललेश्यी हो, ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणामवाला हो, अथवा तत्प्रायोग्य विशुद्ध होत हुए परिणामवाला हो, ऐसा मनुष्य बांधता है । भगवन् ! किस प्रकार की मनुष्य-स्त्री उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले आयुष्यकर्म को बांधती है ? गौतम ! जो कर्मभूमि में उत्पन्न हो अथवा कर्मभूमिजा के समान हो यावत् श्रुत में उपयोगवाली हो, सम्यग्दृष्टि हो, शुक्ललेश्यावाली हो, तत्प्रायोग्य विशुद्ध होते हुए परिणाम वाली हो, ऐसी मनुष्य-स्त्री बांधती है । उत्कृष्ट स्थिति वाले अन्तरायकर्म के बंध के विषय में ज्ञानावरणीयकर्म के समान जानना।
पद-२३-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-२४ -“कर्मबन्धपद") [५४६] भगवन् ! कर्म-प्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, -ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । भगवन् ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता हुआ कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधता है ? गौतम ! सात, आठ या छह । भगवन् ! (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ? गौतम ! सात या आठ । इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना । विशेष यह कि मनुष्य-सम्बन्धी कथन समुच्चय-जीव के समान जानना । (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधते हैं ? गौतम ! सभी जीव सात या आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं; अथवा बहत से जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के और कोई एक जीव छह का बन्धक होता है; अथवा बहुत से जीव सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं । (बहुत से) नैरयिक ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियाँ बांधते हैं ? गौतम ! सभी नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं, अथवा बहुत से नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक और एक नैरयिक आठ कर्म-प्रकृतियों का बन्धक होता