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प्रज्ञापना-२३/२/५४०
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गौतम ! चार प्रकार का -नारकायु यावत् देवायु ।
नामकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! बयालीस प्रकार का, -गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, शरीरांगोपांगनाम, शरीरबन्धननाम, शरीरसंघातनाम, संहनननाम, संस्थाननाम, वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, पराघातनाम, आनुपूर्वीनाम, उच्छ्वासनाम, आतपनाम, उद्योतनाम, विहायोगतिनाम, सनाम, स्थावरनाम, सूक्ष्मनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, साधारणशरीरनाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, शुभनाम, अशुभनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुःस्वरनाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यशःकीर्तिनाम, अयशःकीर्तिनाम, निर्माणनाम और तीर्थंकरनाम । गतिनामकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, नरकगतिनाम यावत् देवगतिनाम । जातिनामकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, -एकेन्द्रियजातिनाम, यावत् पंचेन्द्रियजातिनाम । शरीरनामकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, -औदारिकशरीरनाम यावत् कार्मणशरीरनाम । शरीरांगोपांगनाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का, -
औदारिक, वैक्रिय और आहारकशरीरागोपांग नाम । शरीरबन्धननाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का, -औदारिक० यावत् कार्मणशरीरबन्धननाम । शरीरसंघातनाम ? गौतम ! पांच प्रकार का है -औदारिक० यावत् कार्मणशरीरसंघातनाम । संहनननाम ? गौतम ! छह प्रकार का है, वज्रऋषभनाराच०, ऋषभनाराच०, नाराच०, अर्द्धनाराच०, कीलिका० और सेवार्तसंहनननामकर्म । संस्थाननाम ? गौतम ! छह प्रकार का है, समचतुरस्र०, न्यग्रोधपरिमण्डल०, सादि०, वामन०, कुब्ज और हुण्डकसंस्थाननामकर्म । वर्णनामकर्म ? गौतम ! पांच प्रकार का है, यथा-कालवर्णनाम यावत् शुक्लवर्णनाम । गन्धनामकर्म ? गौतम ! दो प्रकार का, -सुरभिगन्धनाम और दुरभिगन्धनामकर्म । भगवन् ! रसनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा-तिक्तरसनाम यावत् मधुररसनामकर्म । स्पर्शनामकर्म ? गौतम ! आठ प्रकार का है, -कर्कशस्पर्शनाम यावत् रूक्षस्पर्शनामकर्म । अगुरुलघुनाम एक प्रकार का है । उपघातनाम एक प्रकार का है । पराघातनाम एक प्रकार का है । आनुपूर्वीनामकर्म चार प्रकार का है, -नैरयिकानुपूर्वीनाम यावत् देवानुपूर्वीनामकर्म । उच्छ्वासनाम एक प्रकार का है । शेष सब तीर्थंकरनामकर्म तक एकएक प्रकार के हैं । विशेष यह कि विहायोगतिनाम दो प्रकार का है, यथा-प्रशस्त० और अप्रशस्तविहायोगतिनाम कर्म ।
गोत्रकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है, यथा-उच्चगोत्र और नीचगोत्र । उच्चगोत्रकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! आठ प्रकार का है, -जातिविशिष्टता यावत् ऐश्वर्यविशिष्टता। नीचगोत्र भी आठ प्रकार का है । किन्तु यह उच्चगोत्र से विपरीत है, यथा-जातिविहीनता यावत् ऐश्वर्यविहीनता । अन्तरायकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का है, यथा-दानान्तराय यावत् वीर्यान्तरायकर्म ।
[५४१] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीस कोडा-कोडी सागरोपम । उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेक का काल है । निद्रापंचक की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम,