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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
को नैरयिक के समान समझना ।
भगवन् ! इन आरम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्यया तक की क्रियाओं में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे कम मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रियाएँ हैं । (उनसे) अप्रत्याख्यानक्रियाएँ विशेषाधिक हैं । (उनसे) पारिग्रहिकीक्रियाएँ विशेषाधिक हैं । (उनसे) आरम्भिकीक्रियाएँ विशेषाधिक हैं, (और उनसे) मायाप्रत्ययाक्रियाएँ विशेषाधिक हैं ।
पद-२२-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण ( पद-२३-कर्मप्रकृति )
उद्देशक-१ [५३४] कर्म-प्रकृतियाँ कितनी हैं ?, किस प्रकार बंधती हैं ?, कितने स्थानों से कर्म बांधता है ?, कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है ?, किस का अनुभाव कितने प्रकार का होता है ?
[५३५] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय । भगवन् ! नैरयिकों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! पूर्ववत् आठ, वैमानिक तक यहीं समझना ।
[५३६] भगवन् ! जीव आठ कर्मप्रकृतियों को कैसे बांधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से दर्शनावरणीय कर्म को निश्चय ही प्राप्त करता है, दर्शनावरणीय कर्म के उदय से दर्शनमोहनीय कर्म, दर्शनमोहनीय कर्म के उदय से मिथ्यात्व को और इस प्रकार मिथ्यात्व के उदय होने पर जीव निश्चय ही आठ कर्मप्रकृतियों को बांधता है । नारक आठ कर्मप्रकृतियों को कैसे बांधता है ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त समझना । बहुतसे जीव आठ कर्मप्रकृतियाँ कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार बहुत-से वैमानिकों तक समझना ।
[५३७] भगवन् ! जीव कितने स्थानों से ज्ञानावरणीयकर्म बांधता है ? गौतम ! दो स्थानों से, यथा-राग से और द्वेष से । राग दो प्रकार का है, माया और लोभ । द्वेष भी दो प्रकार का है, क्रोध और मान । इस प्रकार वीर्य से उपार्जित चार स्थानों से जीव ज्ञानावरणीयकर्म बांधता है । नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । बहुत जीव कितने कारणों से ज्ञानावरणीयकर्म बांधते हैं ? गौतम ! पूर्वोक्त दो कारणों से । इसी प्रकार बहुत से नैरयिकों से वैमानिकों तक समझना । इसी प्रकार दर्शनावरणीय से अन्तरायकर्म तक समझना । इस प्रकार एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से ये सोलह दण्डक होते हैं ।।
[५३८] भगवन् ! क्या जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदता है ? गौतम ! कोई जीव वेदता है, कोई नहीं । नारक ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता है ? गौतम ! नियम से वेदता है । वैमानिकपर्यन्त इसी प्रकार जानना, किन्तु मनुष्य के विषय में जीव के समान समझना । क्या बहुत जीव ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । ज्ञानावरणीय के समान दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरायकर्म के विषय में समझना । वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म के जीव द्वारा वेदन में भी इसी प्रकार जानना, किन्तु मनुष्य अवश्य वेदता है । इस प्रकार एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से ये सोलह दण्डक हैं ।