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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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का है, सब मिलाकर वे चैत्यवृक्ष आठ योजन से कुछ अधिक ऊँचे हैं ।
उनके मूल वज्ररत्न के हैं, ऊर्ध्व विनिर्गत शाखाएँ रजत की हैं और सुप्रतिष्ठित हैं, कन्द रिष्टरत्नमय है, स्कंध वैडूर्यरत्न का है और रुचिर है, मूलभूत विशाल शाखाएँ शुद्ध और श्रेष्ठ स्वर्ण की हैं, विविध शाखा प्रशाखाएँ नाना मणिरत्नों की हैं, पत्ते वैडूर्यरत्न के हैं, पत्तों के वृन्त तपनीय स्वर्ण के हैं | जम्बूनद जाति के स्वर्ण के समान लाल, मृदु, सुकुमार प्रवाल और पल्लव तथा अंकुरों को धारण करने वाले हैं, उन चैत्यवृक्षों की शाखाएँ विचित्र मणिरत्नों के सुगन्धित फूल और फलों के भार से झुकी हुई हैं । वे चैत्यवृक्ष सुन्दर छाया वाले, सुन्दर कान्ति वाले, किरणों से युक्त और उद्योत करने वाले हैं । अमृतरस के समान उनके फलों का रस है । वे नेत्र और मन को अत्यन्त तृप्ति देनेवाले हैं, प्रासादीय हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं । वे चैत्यवृक्ष अन्य बहुत से तिलक, लवंग, छत्रोपग, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोघ्र, धव, चन्दन, नीप, कुटज, कर्दम्ब, पनस, ताल, तमाल, प्रियाल, प्रियंगु, पारापत, राजवृक्ष और नन्दिवृक्षों से सब ओर से घिरे हुए हैं । वे तिलकवृक्ष यावत् नन्दिवृक्ष अन्य बहुत-सी पद्मलताओं यावत् श्यामलताओं से घिरे हुए हैं । वे पद्मलताएँ यावत् श्यामलताएँ नित्य कुसुमित रहती हैं । यावत् वे प्रतिरूप हैं । उन चैत्यवृक्षों के ऊपर बहुत से आठ-आठ मंगल, ध्वजाएँ और छत्रों पर छत्र हैं ।
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उन चैत्यवृक्षों के आगे तीन दिशाओं में तीन मणिपीठिकाएँ हैं । वे एक-एक योजन लम्बी-चौड़ी और आधे योजन की मोटी हैं । वे सर्वमणिमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग महेन्द्रध्वज हैं जो साढ़े सात योजन ऊँचे, आधा कोस ऊंडे, आधा कोस विस्तार वाले, वज्रमय, गोल, सुन्दर आकारवाले, सुसम्बद्ध, घृष्ट, मृष्ट और सुस्थिर हैं, अनेक श्रेष्ठ पांच वर्णो की लघुपताकाओं से परिमण्डित होने से सुन्दर हैं, वायु से उड़ती हुईं विजय की सूचक वैजयन्ती पताकाओं से युक्त हैं, छत्रों पर छत्र से युक्त हैं, ऊँची हैं, उनके शिखर आकाश को लांघ रहे हैं, वे प्रासादीय यावत् प्रतिरूप हैं । उन महेन्द्रध्वजों के ऊपर आठ-आठ मंगल हैं, ध्वजाएँ हैं और छत्रातिछत्र हैं ।
उन महेन्द्रध्वजों के आगे तीन दिशाओं में तीन नन्दा पुष्करिणियाँ हैं । वे साढ़े बारह योजन लम्बी हैं, छह सवा योजन की चौड़ी हैं, दस योजन ऊंडी हैं, स्वच्छ हैं, श्लक्ष्ण हैं इत्यादि वे पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से घिरी हुई हैं । यावत् वे पुष्करिणियाँ दर्शनीय यावत् प्रतिरूप हैं । उन पुष्करिणियों की तीन दिशाओं में अलग-अलग त्रिसोपानप्रतिरूपक हैं । तोरणों का वर्णन यावत् छत्रों पर छत्र हैं । उस सुधर्मासभा में छह हजार मनोगुलिकाएँ हैं, यथा- पूर्व में दो हजार, पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार । उन मनोगुलिकाओं में बहुत से सोने चांदी के फलक हैं । उन सोने-चांदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक हैं । उन वज्रमय नागदन्तकों में बहुत-सी काले सूत्र में यावत् सफेद डोरे में पिरोई हुई गोल और लटकती हुई पुष्पमालाओं के समुदाय हैं । पुष्पमालाएँ सोन के लम्बूसक वाली हैं यावत् सब दिशाओं को सुगन्ध से भरती हुई स्थित हैं ।
उस सुधर्मासभा में छ हजार गोमाणसियाँ हैं, यथा- पूर्व में दो हजार, पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार । उन गोमाणसियों में बहुत-से सोनेचांदी के फलक हैं, उन फलकों में बहुत से वज्रमय नागदन्तक हैं, उन वज्रमय नागदन्तकों