________________
जीवाजीवाभिगम-३/मनुष्य/१४०
|m
(प्रतिपत्ति-३ "मनुष्य") [१४०] हे भगवन् ! मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, सम्मूर्छिममनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्य । भगवन् ! सम्मूच्छिममनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! एक ही प्रकार के । भगवन् ! ये सम्मूर्छिममनुष्य कहाँ पैदा होते हैं ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र अनुसार यहाँ कहना ।
[१४१] हे भगवन् ! गर्भव्युत्क्रांतिकमनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के, कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और आन्तींपिक ।
[१४२] हे भगवन् ! आन्तींपिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! अट्ठावीस प्रकार के, एकोरुक, आभाषिक, यावत् शुद्धदंत
[१४३] हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामकद्वीप कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में चुल्ल हिमवंत नामक वर्षधर पर्वत के उत्तरपूर्व के चरमान्त से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर दक्षिणदिशा मे एकोरुक द्वीप है । वह द्वीप तीन सौ योजन की लम्बाई-चौड़ाई वाला तथा नौ सौ उनपचास योजन से कुछ अधिक परिधि वाला है । उसके चारों ओर एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड है । वह पद्मवरवेदिका आठ योजन ऊँची, पांच सौ धनुष चौडाई वाली और एकोरुक द्वीप को सब तरफ से घेरे हुए है । उस पद्मवरवेदिका का वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र की तरह कहना ।
[१४४] वह पद्मवरवेदिका एक वनखण्ड से सब ओर से घिरी हुई है । वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोलाकार विस्तार वाला और वेदिका के तुल्य परिधि वाला है । वह वनखण्ड बहुत हरा-भरा और सघन होने से काला और कालीकान्ति वाला प्रतीत होता है, इस प्रकार राजप्रश्नीयसूत्र अनुसार वनखण्ड का वर्णन जानना । तृणों का वर्ण, गंध, स्पर्श, शब्द तथा वावड़ियाँ, उत्पातपर्वत, पृथ्वीशिलापट्टक आदि का भी वर्णन कहना । यावत् वहाँ बहुत से वाणव्यन्तर देव और देवियां उठते-बैठते हैं, यावत् सुखानुभव करते हुए विचरण करते हैं ।
[१४५] हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है । मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है-आदि । इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत् पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना । उस शिलापट्टक पर बहुत से एकोरुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियां उठते-बैठते हैं यावत् पूर्वकृत शुभ कर्मों के फल का अनुभव करते हुए विचरते हैं।
हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर यहाँ-वहाँ बहुत से उद्दालक, कोद्दालक, कृतमाल, नतमाल, नृत्यमाल, श्रृंगमाल, शंखमाल, दंतमाल और शैलमाल नामक द्रुम हैं । वे द्रुम कुश और कांससे रहित मूल वाले हैं वे प्रशस्त मूलवाले, प्रशस्त कंदवाले यावत् प्रशस्त बीजवाले हैं और पत्रों तथा पुष्पों से आच्छन्न, प्रतिचन्न हैं और शोभा से अतीव-अतीव शोभायमान हैं । उस एकोरुकद्वीप में जगह-जगह बहुत से वृक्ष हैं । साथ ही हेरुतालवन, भेरुतालवन, मेरुतालव, सेरुतालवन, सालवन, सरलवन, सप्तपर्णवन, सुपारी के वन, खजूर के वन और नारियलके वन हैं । ये वृक्ष और वन कुश और कांस से रहित यावत् शोभा से अतीव-अतीव शोभायमान हैं । उस एगोरुकद्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से