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जीवाजीवाभिगम-३/तिर्यंच-१/१३३
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देव का एक विक्रम कहना । हे भगवन् ! क्या विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित नाम के विमान हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! वे विमान कितने बड़े हैं ? गौतम ! वही वक्तव्यता कहना यावत् यहाँ नौ अवकाशान्तर प्रमाण क्षेत्र किसी एक देव का एक पदन्यास कहना । इस तीव्र और दिव्यगति से वह देव एक दिन, दो दिन उत्कृष्ट छह मास तक चलता रहे तो किन्ही विमानों के पार पहुंच सकता है और किन्ही विमानों के पार नहीं पहुंच सकता है । हे आयुष्मन् श्रमण ! इतने बड़े विमान के कहे गये हैं ।
प्रतिपत्ति- ३ - तिर्यंचउद्देशक - २
[१३४] हे भगवन् ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के-पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक । पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं - सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक । सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं - पर्याप्त और अपर्याप्त । बादरपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं--पर्याप्त और अपर्याप्त । इस प्रकार जैसा प्रज्ञापनापद में कहा, वैसा कहना । श्लक्ष्ण पृथ्वीकायिक सात प्रकार के हैं और खरपृथ्वीकायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यावत् वे असंख्यात हैं । इस प्रकार जैसा प्रज्ञापनापद में कहा वैसा पूरा कथन वनस्पतिकायिक तक ऐसा ही कहना, यावत् जहाँ एक वनस्पतिकायिक जीव हैं वहाँ कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त वनस्पतिकायिक जानना । सकायिक जीव क्या हैं ? वे चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । द्वीन्द्रिय जीव क्या हैं ? वे अनेक प्रकार के कहे गये हैं । इस प्रकार प्रज्ञापनापद के समान सम्पूर्ण कथन करना जब तक सर्वार्थसिद्ध देवों का अधिकार है ।
[१३५] हे भगवन् ! पृथ्वी कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! छह प्रकार कीश्लक्ष्णपृथ्वी, शुद्धपृथ्वी, बालुकापृथ्वी, मनःशिलापृथ्वी, शर्करापृथ्वी और खरपृथ्वी । हे भगवन् ! श्लक्ष्णपृथ्वी की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एकहजार वर्ष । शुद्धपृथ्वी की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारहहजारवर्ष । बालुकापृथ्वी की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चौदहहजारवर्ष । मनःशिलापृथ्वी की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सोलहहजारवर्ष । शर्करापृथ्वी की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अठारहहजारवर्ष । खरपृथ्वी की स्थिति । जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईसहर्ष भगवन् ! नैरयिकों की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की । इस प्रकार सर्वार्थसिद्ध के देवों तक की स्थिति कहना । भगवन् ! जीव, जीव के रूप में कब तक रहता है ? गौतम ! सब काल तक जीव जीव ही रहता है । भगवन् ! पृथ्वीकायक जीव पृथ्वीकायिक के रूप में कब तक रहता है ? गौतम ! ( पृथ्वीकाय सामान्य की अपेक्षा) सर्वकाल तक रहता है । इस प्रकार त्रसकाय तक कहना ।
[१३६] भगवन् ! अभिनव ( तत्काल उत्पद्यमान) पृथ्वीकायिक जीव कितने काल में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य से और उत्कृष्ट से भी असंख्यात उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी काल में निर्लेप (खाली) हो सकते हैं । यहाँ जघन्य पद से उत्कृष्ट पद में असंख्यातगुण अधिकता जानना । इसी प्रकार अभिनव वायुकायिक तक की वक्तव्यता जानना । भगवन् ! अभिनव वनस्पतिकायिक जीव कितने समय में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम !