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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की शरीर - अवगाहना कितनी है ? गौतम ! दो प्रकार की - भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल है । उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य से अंगुल का संख्यातवां भाग, उत्कृष्ट से पन्द्रह धनुष, अढाई हाथ है । दूसरी शर्कराप्रभा के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग, उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष अढाई हाथ है । उत्तरवैक्रिय जघन्य से अंगुल का संख्यातवां भाग, उत्कृष्ट से इकतीस धनुष एक हाथ है । तीसरी नरक में भवधारणीय इकतीस धनुष, एक हाथ और उत्तरवैक्रिय बासठ धनुष दो हाथ है । चौथी नरक में भवधारणीय बासठ धनुष दो हाथ है और उत्तरवैक्रिय एक सौ पचीस धनुष है । पांचवीं नरक में भवधारणीय एक सौ पचीस धनुष और उत्तरवैक्रिय अढाई सौ धनुष है । छठी नरक में भवधारणीय अढाई सौ धनुष और उत्तरक्रिय पांच सौ धनुष है । सातवीं नरक में भवधारणीय पांच सौ धनुष है और उत्तरवैक्रिय एक हजार धनुष है ।
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[१०३] हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संहनन क्या है ? गौतम ! कोई संहनन नहीं है, क्योंकि उनके शरीर में हड्डियां नहीं हैं, शिराएं नहीं हैं, स्नायु नहीं हैं । जो पुद्गल अनिष्ट और अमणाम होते हैं वे उनके शरीर रूप में एकत्रित हो जाते हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना ।
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संस्थान कैसा है ? गौतम ! उनके संस्थान दो प्रकार के हैं- भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । दोनो हुंडकसंस्थान ही हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों के संस्थान हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीर वर्ण की अपेक्षा कैसे हैं ? गौतम ! काले, काली छाया वाले यावत् अत्यन्त काले कहे गये हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों का वर्ण जानना ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीर की गन्ध कैसी कही गई है ? गौतम ! जैसे कोई मरा हुआ सर्प हो, इत्यादि पूर्ववत् कथन करना । सप्तमीपृथ्वी तक ऐसा समझना । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का स्पर्श कैसा है ? गौतम ! उनके शरीर की चमड़ी फटी हुई होने से तथा झुर्रिया होने से कान्तिरहित है, कर्कश है, कठोर है, छेद वाली है और जली हुई वस्तु की तरह खुरदरी है । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी
तक कहना ।
[१०४] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे - पुद्गल परिणत होते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत् अमणाम पुद्गल परिणत होते हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक जानना । इसी प्रकार जो पुद्गल अनिष्ट एवं अमणाम होते हैं, वे नैरयिकों के आहार रूप में परिणत होते हैं । ऐसा ही कथन रत्नप्रभादि सातों नरकपृथ्वियों में जानना । हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! एक कापोतलेश्या है । इसी प्रकार शर्कराप्रभा में भी कापोतलेश्या है । बालुकाप्रभा में दो लेश्याएँ हैं- नीललेश्या और कापोतलेश्या । कापोतलेश्या वाले अधिक हैं और नीललेश्या वाले थोड़े हैं । पंकप्रभा में एक नीललेश्या है । धूमप्रभा में दो लेश्याएँ हैं - कृष्णलेश्या और नीललेश्या । नीललेश्या