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जीवाजीवाभिगम-२/-/६६
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रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक नपुंसक, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिक नपुंसक । तिर्यंचयोनिक नपुंसक पांच प्रकार के हैं, यथा-एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक।
एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक कितने प्रकार के हैं ? पांच प्रकार के हैं, यथापृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक तिर्यक्योनिक नपुंसक । भंते ! द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! अनेक प्रकार के हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय का कथन करना । पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक तीन प्रकार के हैं-जलचर, स्थलचर और खेचर । जलचर कितने प्रकार के हैं ? वही पूर्वोक्त भेद आसालिक को छोड़कर कहना । भंते ! मनुष्य नपुंसक तीन प्रकार के हैं, यथा-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तरर्टीपिक, पूर्वोक्त भेद कहना ।
[६७] भगवन् ! नपुंसक की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम । भगवन् ! नैरयिक नपुंसक की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम | भगवन् ! तिर्यक्योनिक नपुंसक की ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष । भंते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष । सब एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति कहना ।
__भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । इसी प्रकार जलचरतिर्यंच, चतुष्पदस्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचर तिर्यक्योनिक नपुंसक इन सबकी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि स्थिति है । भगवन् ! मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि स्थिति । कर्मभूमिक भरत-एरवत, पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह के मनुष्य नपुंसक की स्थिति भी इसी प्रकार कहना । भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहर्त । संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि । इसी प्रकार अन्तर्दीपिक मनुष्य नपुंसकों तक की स्थिति कहना ।
भगवन् ! नपुंसक, नपुंसक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल । नैरयिक नपुंसक जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट से तेतीस सागरोपम तक । इस प्रकार सब नारकपृथ्वियों की स्थिति कहना । तिर्यक्योनिक नपुंसक जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल, इस प्रकार एकेन्द्रिय नपुंसक और वनस्पतिकायिक नपुंसक में जानना । शेष पृथ्वीकाय आदि जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक रह सकते हैं । इस असंख्यातकाल में असंख्येय उत्सर्पिणियां और अवसर्पिणियां बीत जाती हैं और क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात लोक के आकाश प्रदेशों का अपहार हो सकता है ।