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________________ २२४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य पच्चीस सागरोपम और उत्कृष्ट छव्वीस सागरोपम है । मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य छव्वीस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्ताईस सागरोपम की है । मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य सत्ताईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की है । इन तीनो ग्रैवेयको के अपर्याप्तक देवो की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहर्त की है और इनके पर्याप्तको की स्थिति अपनी अपनी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम है । उपरितन-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की ? गौतम ! जघन्य अट्ठाईस तथा उत्कृष्ट उनतीस सागरोपम है । उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य उनतीस तथा उत्कृष्ट तीस सागरोपम है । भगवन् ! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयकदेवों की स्थिति जघन्य तीस तथा उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम है । इन तीनो के अपर्याप्तक और पर्याप्तक देवो की स्थिति का कथन पूर्व ग्रैवेयकवत् जानना । ____ भगवन् ! विजय, वैजयन्त; जयन्त और अपराजित विमानों में देवों की स्थिति कितने काल तक की है ? जघन्य इकतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है । सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों की स्थिति अजघन्य अनुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम है । पांच अनुत्तर विमान के अपर्याप्तक देवो की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त की है और पर्याप्तक देवो की स्थिति अपनी औधिक स्थिति से अन्तर्मुहर्त कम है । पद-४-का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (पद-५-"विशेष" [३०७] भगवन् ! पर्याय कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । जीवपर्याय और अजीवपर्याय । भगवन् ! जीवपर्याय क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! (वे) अनन्त हैं । भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! असंख्यात नैरयिक हैं, असंख्यात असुर हैं, असंख्यात नागकुमार हैं, यावत् असंख्यात स्तनितकुमार हैं, असंख्यात पृथ्वीकायिक हैं, यावत् असंख्यात वायुकायिक हैं, अनन्त वनस्पतिकायिक हैं, असंख्यात द्वीन्द्रिय यावत् असंख्यात पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक हैं, असंख्यात मनुष्य हैं, असंख्यात वाणव्यन्तर देव हैं, असंख्यात ज्योतिष्क देव हैं, असंख्यात वैमानिक देव हैं और अनन्तसिद्ध हैं । हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि वे (जीवपर्याय) अनन्त हैं । [३०८] भगवन् ! नैरयिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त । भगवन् ! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! एक नारक दूसरे नारक से द्रव्य से तुल्य है । प्रदेशों से तुल्य है; अवगाहना से-कथंचित् हीन, कथंचित् तुल्य और कथंचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग अथवा संख्यातभाग हीन है; या संख्यातगुणा अथवा असंख्यातगुणा हीन है । यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है या संख्यातभाग अधिक है; अथवा संख्यातगुणा या असंख्यातगुणा अधिक है । स्थिति से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है । यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन यावत् असंख्यातगुण हीन है । अगर अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक यावत् असंख्यातगुण अधिक है । कृष्णवर्ण-पर्यायों से-कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है । यदि
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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