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________________ १९२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भगवन् ! पर्याप्त एवं अपर्याप्त दाक्षिणात्य असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप में सुमेरुपर्वत के दक्षिण में, १,८०,००० योजन मोटी इस रत्नाप्रभापृथ्वी के बीच में १,७८,००० योजन क्षेत्र में दाक्षिणात्य असुरकुमार देवों के १,३४,००० भवनावास है । भवन, निवास, इत्यादि समस्त वर्णन पूर्ववत् । इन्हीं में (दाक्षिणात्य) असुरकुमारों का इन्द्र असुरराज चमरेन्द्र निवास करता है, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । चमरेन्द्र वहाँ ३४ लाख भवनावासों का, ६४,००० सामानिकों का, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का, चार लोकपालों का, पांच सपरिवार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपति देवों का, २,५६,००० आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत-से दाक्षिणात्य असुरकुमार देवों और देवियों का आधिपत्य एवं अग्रेसरत्व करता हुआ यावत् विचरण करता है । भगवन् ! उत्तरदिशा में पर्याप्त और अपर्याप्त असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी मध्य के १,७८,००० योजन प्रदेश में, उत्तरदिशा के असुरकुमार देवों के तीस लाख भवनावास है । शेष सब वर्णन पूर्ववत् । इन्हीं स्थानों में वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलीन्द्र निवास करता है, वह वहाँ तीस लाख भवनावासों का, ६०,००० सामानिक देवों का, तैंतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का, यावत् २,४०,००० आत्मरक्षक देवों का तथा और भी बहुत-से उत्तरदिशा के असुरकुमार देवों और देवियों का आधिपत्य एवं पुरोवर्तित्व करता हुआ विचरण करता है ।। भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त नागकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन ! नागकुमार देव कहाँ निवास करते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर बीच में १,७८,००० योजन में, नागकुमार देवों के चौरासी लाख भवनावास है । इत्यादि समस्त वर्णन पूर्ववत् । यहाँ दो नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज-धरणेन्द्र और भूतानन्देन्द्र-निवास करते हैं । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य नागकुमारों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी मध्य में १,७८,००० हजारयोजन में, दाक्षिणात्य नागकुमार देवों के ४४ लाख भवन है । इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । इन्हीं स्थानों में नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र निवास करता है, वहाँ वह ४४ लाख भवनावासों का, ६००० सामानिकों का, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का, यावत् २४,००० आत्मरक्षक देवों का और अन्य बहुत-से दाक्षिणात्य नागकुमार देवों देवियों का आधिपत्य और अग्रेसरत्व करता हुआ विचरण करता है । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त उत्तरदिशा के नागकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के बीच में १,७८,००० योजन में, उत्तरदिशा के नागकुमार देवों के चालीस लाख भवनावास है । इत्यादि पूर्ववत् । इन्हीं स्थानों में नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द निवास करता है, इत्यादि । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् सुपर्णकुमार देवों के बहत्तर लाख भवनावास है । भवन वर्णन पूर्ववत्। वहाँ पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान हैं । इत्यादि समग्र वर्णन यावत् 'विचरण करते हैं। पूर्ववत् जानना । इन्हीं में दो सुपर्णकुमारेन्द्र सुपर्णकुमारराज-वेणुदेव और वेणुदाली निवास करते हैं, जो महर्द्धिक हैं; इत्यादि पूर्ववत् । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इसी रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् मध्य में १,७८,००० योजन में, दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के अड़तीस लाख भवनावास है । शेष वर्णन पूर्ववत् । यहाँ पर्याप्तक और अपर्याप्तक दाक्षिणात्य सुपर्णकुमारों के स्थान हैं । यहाँ बहुत-से सुपर्णकुमार देव
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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