________________
१५८
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त । भगवन् ! छद्मस्थ-आहारक का अन्तर कितना कहा गया है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय । केवलि-आहारक का अन्तर जघन्य-उत्कृष्ट रहित तीन समय । अनाहारक का अंतर जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से असंख्यात काल यावत् अंगुल का असंख्यातभाग । सिद्धकेवलि-अनाहारक सादि-अपर्यवसित है अतः अन्तर नहीं है । सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट से भी यही है । अयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक का अन्तर नहीं है । भगवन् ! इन आहारकों और अनाहारकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े अनाहारक हैं, उनसे आहारक असंख्येयगुण हैं ।
[३७३] अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-सभाषक और अभाषक । भगवन् ! सभाषक, सभाषक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त । गौतम ! अभाषक दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादिसपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित अभाषक हैं, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट में अनन्त काल तक अर्थात् अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकाल तक रहता है ।।
. भगवन् ! भाषक का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अनन्तकाल अर्थात् वनस्पतिकाल । सादि-अपर्यवसित अभाषक का अन्तर नहीं हैं । सादिसपर्यवसित का अन्तर जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े भाषक हैं, अभाषक उनसे अनन्तगुण हैं । अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं-सशरीरी और अशरीरी । अशरीरी की संचिट्ठणा आदि सिद्धों की तरह तथा सशरीरी की असिद्धों की तरह कहना यावत् अशरीरी थोड़े हैं और सशरीरी अनन्तगुण हैं ।
[३७४] अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-चरम और अचरम । चरम अनादिसपर्यवसित है । अचरम दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित और सादि-अपर्यवसित । दोनों का अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अचरम हैं, उनसे चरम अनन्तगुण हैं ।
प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-२ [३७५] जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव तीन प्रकार के हैं, उनका मंतव्य इस प्रकार. है-यथा सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि । भगवन् ! सम्यग्दृष्टि काल से सम्यग्दृष्टि कब तक रह सकता है ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित और सादिसपर्यवति । जो सादि-सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि हैं, वे जघन्य से अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट से साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकते हैं । मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार के हैं सादि-सपर्यवसित, अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । इनमें जो सादि-सपर्यवसित हैं वे जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अनन्तकाल तक जो यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है, मिथ्यादृष्टि रूप से रह सकते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जघन्य से अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्ष से भी अन्तर्मुहूर्त तक रह सकता है ।।
सम्यग्दृष्टि के अन्तरद्वार में सादि-अपर्यवसित का अंतर नहीं है, सादि-सपर्यवसित का जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है, जो यावत् अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है । अनादिअपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का अन्तर नहीं है, अनादि-सपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का भी अन्तर नहीं