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जीवाजीवाभिगम-३/देव./३०७
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का छेदन-भेदन भी नहीं है । द्वितीय भंग में छेदन-भेदन है । तृतीय भंग में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण करना और बाल-शरीर का छेदन-भेदन नहीं है । चौथे भंग में बाह्य पुद्गलों का ग्रहण भी है और पूर्व में बाल-शरीर का छेदन-भेदन भी है । इस छोटे-बड़े करने की सिद्धि को छद्मस्थ नहीं जान सकता और नहीं देख सकता । यह विधि बहुत सूक्ष्म होती है ।
प्रतिपत्ति-३ “ज्योतिष्क" | [३०८] भगवन् ! चन्द्र और सूर्यों के क्षेत्र की अपेक्षा नीचे रहे हुए जो तारा रूप देव हैं, वे क्या हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? चन्द्र-सूर्यों के क्षेत्र की समश्रेणी में रहे हए तारा रूप देव, चन्द्र-सूर्यों से द्युति आदि में हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? तथा जो तारा रूप देव चन्द्र और सूर्यों के ऊपर अवस्थित हैं, वे धुति आदि की अपेक्षा हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? हां, गौतम ! हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जैसे-जैसे उन तारा रूप देवों के पूर्वभव में किये हुए नियम और ब्रह्मचर्यादि में उत्कृष्टता या अनुत्कृष्टता होती है, उसी अनुपात में उनमें अणुत्व या तुल्यत्व होता है ।
[३०९] प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के परिवार में
३१०] ८८ ग्रह, २८ नक्षत्र और [३११] ताराओं की संख्या ६६९७५ कोडाकोडी होती है ।
[३१२] भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिष्कदेव कितनी दूर रहकर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन दूरी से प्रदक्षिणा करते हैं । इसी तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर चरमान्त से भी समझना | भगवन् ! लोकान्त से कितनी दूरी पर ज्योतिष्कचक्र है ? गौतम ! ११११ योजन पर ज्योतिष्कचक्र है । इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से ७९० योजन दूरी पर सबसे निचला तारा गति करता है । ८०० योजन दूरी पर सूर्यविमान चलता है । ८८० योजन पर चन्द्रविमान चलता है । ९०० योजन दूरी पर सबसे ऊपरवर्ती तारा गति करता है ।
भगवन् ! सबसे निचले तारा से कितनी दूर सूर्य का विमान चलता है ? कितनी दूरी पर चन्द्र का विमान चलता है ? कितनी दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है ? गौतम ! सबसे निचले तारा से दस योजन दूरी पर सूर्यविमान चलता है, नब्बे योजन दूरी पर चन्द्रविमान चलता है । एक सौ दस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है । सूर्यविमान से अस्सी योजन की दूरी पर चन्द्रविमान चलता है और एक सौ योजन ऊपर सर्वोपरि तारा चलता है। चन्द्रविमान से बीस योजन दूरी पर सबसे ऊपर का तारा चलता है । इस प्रकार सब मिलाकर एक सौ दस योजन के वाहल्य में तिर्यदिशा में असंख्यात योजन पर्यन्त ज्योतिष्कचक्र कहा गया है ।
[३१३] भगवन् ! जम्बूद्वीप में कौन-सा नक्षत्र सब नक्षत्रों के भीतर, बाहर मण्डलगति से तथा ऊपर, नीचे विचरण करता है ? गौतम ! अभिजित् नक्षत्र सबसे भीतर रहकर, मूल नक्षत्र सब नक्षत्रों से बाहर रहकर, स्वाति नक्षत्र सब नक्षत्रों से ऊपर रहकर और भरणी नक्षत्र सबसे नीचे मण्डलगति से विचरण करता है ।
[३१४] भगवन् ! चन्द्रमा का विमान किस आकार का है ? गौतम ! चन्द्रविमान