________________
जीवाजीवाभिगम-३ / द्वीप./१९१
से पूर्व की शाखा पर एक विशाल भवन है जो एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा, देशोन एक कोस ऊँचा है, अनेक सैकड़ों खंभों पर आधारित है आदि । वे द्वार पाँच सौ धनुष के ऊँचे, ढाई सौ धनुष के चौड़े है । उस जम्बू की दक्षिणी शाखा पर एक विशाल प्रासादावतंसक है, जो एक कोस ऊँचा, आधा कोस लम्बा-चौड़ा है और उन्नत है । उस जम्बू की पश्चिमी एवं उत्तरी शाखा पर एक विशाल प्रासादावतंसक है ।
१०९
उस जम्बूवृक्ष की ऊपरी शाखा पर एक विशाल सिद्धायतन (अरिहंत चैत्य ) है जो एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा और देशोन एक कोस ऊँचा है । उसकी तीनों दिशाओं में तीन द्वार कहे गये हैं जो पांच सौ धनुष ऊँचे, ढाई सौ धनुष चौड़े हैं । पांच सौ धनुष की मणिपीठिका है । उस पर पांच सौ धनुष चौड़ा और कुछ अधिक पांच सौ धनुप ऊँचा देवच्छंदक है । उस देवच्छंदक में जिनोत्सेध प्रमाण एक सौ आठ अरिहंत प्रतिमाएँ हैं । इस प्रकार पूरी सिद्धायतन वक्तव्यता कहना ।
यह सुदर्शना, जम्बू मूल में बारह पद्मवरवेदिकाओं से चारों ओर घिरी हुई है । वे पद्मवेदिकाएँ आधा योजन ऊँची, पांच सौ धनुष चौड़ी हैं । यह जम्बूसुदर्शना एक सौ आठ अन्य उससे आधी ऊँचाई वाली जंबुओं से चारों ओर घिरी हुई है । वे जम्बू चार योजन ऊँची, एक कोस जमीन में गहरी हैं, एक योजन का उनका स्कन्ध, एक योजन का विष्कंभ है, तीन योजन तक फैली हुई शाखाएँ हैं । उनका मध्यभाग में चार योजन का विष्कंभ है और चार योजन से अधिक उनकी समग्र ऊँचाई है । जम्बूसुदर्शना के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में और उत्तरपूर्व में अनाहत देव के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार जम्बू हैं । जम्बू सुदर्शना के पूर्व में अनाहत देव की चार अग्रमहिषियों के चार जम्बू हैं । जंबू- सुदर्शना सौ-सौ योजन के तीन वनखण्डों से चारों ओर घिरी हुई हैं । जंबू - सुदर्शना के पूर्वादि चारो दिशा में प्रथम वनखण्ड में पचास योजन आगे जाने पर एक विशाल भवन है;
जम्बू - सुदर्शना के उत्तरपूर्व के प्रथम वनखंड में पचास योजन आगे जाने पर चार नंदापुष्करिणियां हैं, पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा और कुमुदप्रभा । वे एक कोस लम्बी, आधा कोस चौड़ी, पांच सौ धनुष गहरी हैं । उन नंदापुष्करिणियों के बहुमध्यदेशभाग में प्रासादावतंसक है जो एक कोस ऊँचा है, आधा कोस का चौड़ा है । इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व में भी पचास योजन जाने पर चार नंदापुष्करिणियां हैं, उत्पलगुल्मा, नलिना, उत्पला, उत्पलोज्ज्वला । दक्षिण-पश्चिम में भी पचास योजन आगे जाने पर चार पुष्करिणियां हैं, भृंगा, भृंगिनिया, अंजना एवं कज्जलप्रभा । जम्बू- सुदर्शना के उत्तर-पूर्व में प्रथम वनखंड में पचास योजन आगे जाने पर चार नंदा - पुष्करिणियां हैं, श्रीकान्ता, श्रीमहिता, श्रीचंद्रा और श्रीनिलया ।
जम्बू- सुदर्शना के पूर्वदिशा के भवन के उत्तर में और उत्तरपूर्व के प्रासादावतंसक के दक्षिण में एक विशाल कूट है जो आठ योजन ऊंचा, मूल में बारह योजन, मध्य में आठ योजन, ऊपर चार योजन है । मूल में कुछ अधिक सैंतीस योजन की, मध्य में कुछ अधिक पच्चीस योजन की और ऊपर कुछ अधिक बारह योजन की परिधि वाला - मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतला, गोपुच्छ आकार से संस्थित है, सर्वात्मना जाम्बूनद स्वर्णमय है, स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है । वह कूट एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है । उस कूट के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है यावत् वहाँ बहुत से वानव्यन्तर