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प्रश्नव्याकरण- १/३/१५
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जिनका हृदय अनुकम्पा से शून्य है, जो परलोक की परवाह नहीं करते, ऐसे लोग धन से समृद्ध ग्रामों, आकरों, नगरों, खेटों, कर्बटों, मडम्बों, पत्तनों, द्रोणमुखों, आश्रमों, निगमों एवं देशों को नष्ट कर देते हैं । और वे कठोर हृदयवाले या निहित स्वार्थवाले, निर्लज्ज लोग मानवों को बन्दी बनाकर अथवा गायों आदि को ग्रहण करके ले जाते हैं । दारुण मति वाले, कृपाहीन - अपने आत्मीय जनों का भी घात करते हैं । वे गृहों की सन्धि को छेदते हैं । जो परकीय द्रव्यों से विरत नहीं हैं ऐसे निर्दय बुद्धि वाले लोगों के घरों में रक्खे हुए धन, धान्य एवं अन्य प्रकार के समूहों को हर लेते हैं ।
इसी प्रकार कितने ही अदत्तादान की गवेषणा करते हुए काल और अकाल में इधरउधर भटकते हुए ऐसे श्मशान में फिरते हैं वहाँ चिताओं में जलती हुई लाशें पड़ी हैं, रक्त से लथपथ मृत शरीरों को पूरा खा लेने और रुधिर पी लेने के पश्चात् इधर-उधर फिरती हुई डाकिनों के कारण जो अत्यन्त भयावह जान पड़ता है, जहाँ गीदड़ खीं खीं ध्वनि कर रहे हैं, उल्लुओं की डरावनी आवाज आ रही है, भयोत्पादक एवं विद्रूप पिशाचों द्वारा अट्टहास करने से जो अतिशय भयावना एवं अरमणीय हो रहा हैं और जो तीव्र दुर्गन्ध से व्याप्त एवं घिनौना होने के कारण देखने से भीषण जान पड़ता है । ऐसे श्मशान स्थानों के अतिरिक्त वनों में, सूने घरों में, लयनों में, मार्ग में, बनी हुई दुकानों, पर्वतों की गुफाओं, विषम स्थानों और हिंस्त्र प्राणियों से व्याप्त स्थानों में क्लेश भोगते हुए मारे-मारे फिरते हैं । उनके शरीर की चमड़ी शीत और उष्ण से शुष्क हो जाती है, जल जाती है या चेहरे की कान्ति मंद पड़ जाती है । वे नरकभव में और तिर्यंच भव रूपी गहन वन में होने वाले निरन्तर दुःखों की अधिकता द्वारा भोगने योग्य पापकर्मों का संचय करते हैं । ऐसे घोर पापकर्मों का वे संचय करते हैं । उन्हें खाने योग्य अन्न और जल भी दुर्लभ होता है । कभी प्यासे, कभी भूखे, थके और कभी मांस, शब-मुर्दा, कभी कन्दमूल आदि जो कुछ भी मिला जाता है, उसी को खा लेते हैं । वे निरन्तर उद्विग्न रहते हैं, सदैव उत्कंठित रहते हैं उनका कोई शरण नहीं होता । इस प्रकार वे अटवीवास करते हैं, जिसमें सैकड़ों सर्पों आदि का भय बना रहता है ।
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वे अकीर्तिकर काम करने वाले और भयंकर तस्कर, ऐसी गुप्त विचारणा करते रहते हैं। कि आज किसके द्रव्य का अपहरण करें; वे बहुत-से मनुष्यों के कार्य करने में विघ्नकारी होते हैं । वे नशा के कारण बेभान, प्रमत्त और विश्वास रखनेवाले लोगों का अवसर देखकर घात कर देते हैं । विपत्ति और अभ्युदय के प्रसंगों में चोरी करने की बुद्धि वालेहोते हैं । भेड़ियों की तरह रुधिर - पिपासु होकर इधर-उधर भटकते रहते हैं । वे राजाओं की मर्यादाओं का अतिक्रमण करनेवाले, सज्जन पुरुषों द्वारा निन्दित एवं पापकर्म करनेवाले अपनी ही करतूतों के कारण अशुभ परिणामवाले और दुःख के भागी होते हैं । सदैव मलिन, दुःखमय अशान्तियुक्त चित्तवाले ये परकीय द्रव्य को हरण करने वाले इसी भव में सैकड़ों कष्टों से घिर कर क्लेश पाते हैं ।
[१६] इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कई चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा-पीटा जाता है, बाँधा जाता है और कैद किया जाता है । उन्हें वेग के साथ घुमाया जाता है । तत्पश्चात् चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर उन्हें कारागार में ठूंस देते । कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण एवं कठोर वचनों की