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________________ प्रश्नव्याकरण-१/२/११ करने की प्रेरणा करते हैं । गुप्तचरों को ग्राम, नगर, आकर और पत्तन आदि बस्तियाँ बतलाते हैं । ग्रन्थिभेदकों को रास्ते के अन्त में अथवा बीच में मारने-लूटने-टांठ काटने आदि की सीख देते हैं । नगररक्षकों को की हुई चोरी का भेद बतलाते हैं । गाय आदि पशुओं का पालन करने वालों को लांछन, नपुंसक, धमण, दुहना, पोषना, पीड़ा पहुँचाना, वाहन गाड़ी आदि में जोतना, इत्यादि अनेकानेक पाप-पूर्ण कार्य सिखलाते हैं । इसके अतिरिक्त खान वालों को गैरिक आदि धातुएँ बतलाते हैं, चन्द्रकान्त आदि मणियाँ बतलाते हैं, शिलाप्रवाल बतलाते हैं। मालियों को पुष्पों और फलों के प्रकार बतलाते हैं तथा वनचरों को मधु का मूल्य और मधु के छत्ते बतलाते हैं । मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के लिए यन्त्रों, संखिया आदि विषों, गर्भपात आदि के लिए जड़ी-बूटियों के प्रयोग, मन्त्र आदि द्वारा नगर में क्षोभ या विद्वेष उत्पन्न कर देने, द्रव्य और भाव से वशीकरण मन्त्रों एवं औषधियों के प्रयोग करने, चोरी, परस्त्रीगमन करने आदि के बहुत-से पापकर्मों के उपदेश तथा छल से शत्रुसेना की शक्ति को नष्ट करने अथवा उसे कुचल देने के, जंगल में आग लगा देने, तालाब आदि जलाशयों को सुखा देने के, ग्रामघात के, बुद्धि के विषय-विज्ञान आदि भय, मरण, क्लेश और दुःख उत्पन्न करने वाले, अतीव संक्लेश होने के कारण मलिन, जीवों का घात और उपघात करने वाले वचन तथ्य होने पर भी प्राणियों का घात करने वाले होने से असत्य वचन, मृषावादी बोलते हैं । अन्य प्राणियों को सन्ताप करने में प्रवृत्त, अविचारपूर्वक भाषण करने वाले लोग किसी के पूछने पर और विना पूछे ही सहसा दूसरों को उपदेश देते हैं कि ऊंटों को बैलों को और रोझों को दमो । वयःप्राप्त अश्वों को, हाथियों को, भेड़-बकरियों को या मुर्गों को खरीदो खरीदवाओ, इन्हें बेच दो, पकाने योग्य वस्तुओं को पकाओ स्वजन को दे दो, पेय-का पान करो, दासी, दास, भृतक, भागीदार, शिष्य, कर्मकर, किंकर, ये सब प्रकार के कर्मचारी तथा ये स्वजन और परिजन क्यों कैसे बैठे हुए हैं ! ये भरण-पोषण करने योग्य हैं । ये आपका काम करें । ये सघन वन, खेत, विना जोती हुई भूमि, वल्लर, जो उगे हुए घास-फूस से भरे हैं, इन्हें जला डालो, घास कटवाओ या उखड़वा डालो, यन्त्रों, भांड उपकरणों के लिए और नाना प्रकार के प्रयोजनों के लिए वृक्षों को कटवाओ, इक्षु को कटवाओ, तिलों को पेलो, ईंटों को पकाओ, खेतों को जोतो, जल्दी-से ग्राम, आकर नगर, खेड़ा और कर्वट-कुनगर आदि को वसाओ । पुष्पों औ. फलों को तथा प्राप्तकाल कन्दों और मूलों को ग्रहण करो | इनका संचय करो । शाली, ब्रीहि आदि और जौ को काट लो । इन्हें मलो । पवन से साफ करो और शीघ्र कोठार में भर लो । छोटे, मध्यम और बड़े नौकादल या नौकाव्यापारियों या नौकायात्रियों के समूह को नष्ट कर दो, सेना प्रयाण करे, संग्रामभूमि में जाए, घोर युद्ध प्रारंभ हो, गाड़ी और नौका आदि वाहन चलें, उपनयन संस्कार, चोलक, विवाहसंस्कार, यज्ञ-ये सब कार्य अमुक दिनों में, बालव आदि करणों में, अमृतसिद्धि आदि मुहूर्तों में, अश्विनी पुष्प आदि नक्षत्रों में और नन्दा आदि तिथियों में होने चाहिए । आज सौभाग्य के लिए स्नान करना चाहिए-आज प्रमोदपूर्वक बहुत विपुल मात्रा में खाद्य पदार्थों एवं मदिरा आदि पेय पदार्थों के भोज के साथ सौभाग्यवृद्धि अथवा पुत्रादि की प्राप्ति के लिए वधू आदि को स्नान कराओ तथा कौतुक करो । सूर्यग्रहण,
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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