SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्तकृद्दशा - ६/४ से १४ / २८ ३९ दीक्षापर्याय का पालन किया और अन्त समय में विपुलगिरि पर्वत पर जाकर संथारा आदि करके सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गया । [२९] इसी प्रकार क्षेमक गाथापति का वर्णन समझें । विशेष इतना है कि काकंदी नगरी के निवासी थे और सोलह वर्ष का उनका दीक्षाकाल रहा, यावत् वे भी विपुलगिरि पर सिद्ध हुए । [३०] ऐसे ही धृतिधर गाथापति का भी वर्णन समझें । वे काकंदी के निवासी थे । [३१] इसी प्रकार कैलाश गाथापति भी थे । विशेष यह कि ये साकेत नगर के रहने वाले थे, इन्होंने बारह वर्ष की दीक्षा पर्याय पाली और विपुलगिरि पर्वत पर सिद्ध हुए । [३२] ऐसे ही आठवें हरिचन्दन गाथापति भी थे । वे भी साकेत नगरनिवासी थे [३३] इसी तरह नवमे वारत गाथापति राजगृह नगर के रहने वाले थे । [३४] दशवें सुदर्शन गाथापति का वर्णन भी इसी प्रकार समझें । विशेष यह कि वाणिज्यग्राम नगर के बाहर घुतिपलाश नाम का उद्यान था । वहाँ दीक्षित हुए । पांच वर्ष का चारित्र पालकर विपुलगिरि से सिद्ध हुए । [३५] पूर्णभद्र गाथापति का वर्णन सुदर्शन जैसा ही है । [३६] सुमनभद्र गाथापति श्रावस्ती नगरी के वासी थे । बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलाचल पर सिद्ध हुए । [३७] सुप्रतिष्ठित गाथापति श्रावस्ती नगरी के थे और सत्ताईस वर्ष संयम पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए । [३८] मेघ गाथापति का वृत्तान्त भी ऐसे ही समझें । विशेष-राजगृह के निवासी थे और बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए । वर्ग-६ अध्ययन - १५ [३९] उस कल और उस समय में पोलासपुरनामक नगर था । वहाँ श्रीवननामक उद्यान था । उस नगर में विजयनामक राजा था । उस की श्रीदेवी नाम की महारानी थी, यहाँ राजा रानी का वर्णन समझ लेना । महाराजा विजय का पुत्र, श्रीदेवी का आत्मज अतिमुक्त नाम का कुमार था जो अतीव सुकुमार था । उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर पोलासपुर नगर के श्रीवन उद्यान में पधारे । उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति, व्याख्याप्रज्ञप्ति में कहे अनुसार निरन्तर बेले - बेले का तप करते हुए संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे । पारणे के दिन पहली पौरिसी में स्वाध्याय, दूसरी पौरिसी में ध्यान और तीसरी पौरिसी में शारीरिक शीघ्रता से रहित, मानसिक चपलता रहित, आकुलता और उत्सुकता रहित, होकर मुखवस्त्रिका की पडिलेखना करते हैं और फिर पात्रों और वस्त्रों की प्रतिलेखना करते हैं । फिर पात्रों की प्रमार्जना करके और पात्रों को लेकर जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहाँ आए, आकर भगवान् को वंदना - नमस्कार कर इस प्रकार निवेदन किया- "हे भगवन् ! आज षष्ठभक्त के पारणे के दिन आपकी आज्ञा होने पर पोलासपुर नगर में यावत्- भिक्षार्थ भ्रमण करने लगे । इधर अतिमुक्त कुमार स्नान करके यावत् शरीर की विभूषा करके बहुत से लड़के
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy