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________________ अन्तकृद्दशा-३/८/१३ २५ के होदे पर आरूढ़ होकर कोरंट पुष्पों की माला सहित छत्र धारण किये हुए, श्वेत चामरों से दोनों ओर से निरन्तर वीज्यमान होते हुए, द्वारका नगरी के मध्य भाग से होकर अर्हत् अरिष्टनेमि के वन्दन के लिये जाते हुए, राज-मार्ग में खेलती हुई उस सोमा कन्या को देखते हैं । सोमा कन्या के रूप, लावण्य और कान्ति-युक्त यौवन को देखकर कृष्ण वासुदेव अत्यन्त आश्चर्य चकित हुए । तब वह कृष्ण वासुदेव आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाते हैं । बुलाकर इस प्रकार कहते हैं-“हे देवानुप्रियो ! तुम सोमिल ब्राह्मण के पास जाओ और उससे इस सोमा कन्या की याचना करो, उसे प्राप्त करो और फिर उसे लेकर कन्याओं के अन्तःपुर में पहुँचा दो । यह सोमा कन्या, मेरे छोटे भाई गजकुसुमाल की भार्या होगी ।" तब आज्ञाकारी पुरुषों ने यावत् वैसा ही किया । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव द्वारका नगरी के मध्य भाग से होते हुए निकले, जहां सहस्त्राम्रवन उद्यान था और भगवान् अरिष्टनेमि थे, वहाँ आये । यावत् उपासना करने लगे । उस समय भगवान् अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव और गजसुकुमार कुमार प्रमुख उस सभा को धर्मोपदेश दिया । प्रभु की अमोघ वाणी सुनने के पश्चात् कृष्ण अपने आवास को लौट गये । तदनन्तर गजसुकुमार कुमार भगवान् श्री अरिष्टनेमि के पास धर्मकथा सुनकर विरक्त होकर बोले-भगवन् ! माता-पिता से पूछकर मैं आपके पास दीक्षा ग्रहण करूँगा । मेघ कुमार की तरह, विशेष रूप से माता-पिता ने उन्हें महिलावर्ज वंशवृद्धि होने के बाद दीक्षा ग्रहण करने को कहा । तदनन्तर कृष्ण वासुदेव गजसुकुमार के विरक्त होने की बात सुनकर गजसुकुमार के पास आये और आकर उन्होंने गजसुकुमार कुमार का आलिंगन किया, आलिंगन कर गोद में बिठाया, गोद में बिठाकर इस प्रकार बोले-'हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे सहोदर छोटे भाई हो, इसलिये मेरा कहना है कि इस समय भगवान् अरिष्टनेमि के पास मुंडित होकर अगार से अनगार बनने रूप दीक्षा ग्रहण मत करो । मैं तुमको द्वारका नगरी में बहुत बड़े समारोह के साथ राज्याभिषेक से अभिषिक्त करूंगा ।" तब गजसुकुमार कुमार कृष्ण वासुदेव द्वारा ऐसा कहे जाने पर मौन रहे । कुछ समय मौन रहने के बाद गजसुकुमार अपने बड़े भाई कृष्ण वासुदेव एवं माता-पिता की दूसरी बार और तीसरी बार भी इस प्रकार बोले "हे देवानुप्रियो ! वस्तुतः मनुष्य के कामभोग एवं देह यावत् नष्ट होने वाले हैं । इसलिये हे देवानुप्रियो ! मैं चाहता हूँ कि आपकी आज्ञा मिलने पर मैं अरिहंत अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर लूं ।" तदनन्तर गजसुकुमाल कुमार को कृष्ण-वासुदेव और माता-पिता जब बहुत-सी अनुकूल और स्नेह भरी युक्तियों से भी समझाने में समर्थ नहीं हुए तब निराश होकर श्रीकृष्ण एवं माता-पिता इस प्रकार बोले-“यदि ऐसा ही है तो हे पुत्र ! हम एक दिन ही तुम्हारी राज्यश्री देखना चाहते हैं । इसलिये तुम कम से कम एक दिन के लिये तो राजलक्ष्मी को स्वीकार करो ।" तब गजसुकुमार कुमार वासुदेव कृष्ण और माता-पिता की इच्छा का अनुसरण करके चुप रह गए । यावत् गजसुकुमाल राज्यभिषेक से अभिषिक्त हो गए । गज सुकुमाल राजा हो गए । यावत् हे पुत्र ! हम तुझे क्या देवे ? क्या प्रयोजन है ? तब गज सुकुमाल ने कहा “हे मातापिता !" मेरे लिए रजोहरण और पात्र मंगवाना तथा नापित को बुलाना चाहता हुं । यावत् महाबलकुमार की तरह गजसुकुमाल भी प्रव्रजित हो गए । इरिया समिति आदि का पालन करने लगे यावत् जितेन्द्रिय होकर शुद्ध ब्रह्मचर्य की परिपालना
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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