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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
के तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का अर्थ प्रतिपादन किया था ।
| वर्ग-३ अध्ययन-२ से ६ | [११] इसी प्रकार अनन्तसेन से लेकर शत्रुसेन पर्यन्त अध्ययनों का वर्णन भी जान लेना चाहिए । सब का बत्तीस-बत्तीस श्रेष्ठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ था और सब को बत्तीस-बत्तीस पूर्वोक्त वस्तुएं दी गई । बीस वर्ष तक संयम का पालन एवं १४ पूर्वो का अध्ययन किया । अन्त में एक मास की संलेखना द्वारा शत्रुजय पर्वत पर पाँचों ही सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।
| वर्ग-३ अध्ययन-७ । [१२] उस काल तथा उस समय में द्वारका नगरी थी । वसुदेव राजा थे । रानी धारिणी थी । उसने गर्भाधान के पश्चात् स्वप्न में सिंह देखा । समय आने पर बालक को जन्म दिया और उसका नाम सारणकुमार रखा । उसे विवाह में पचास-पचास वस्तुओं का दहेज मिला । सारणकुमार ने सामायिक से लेकर १४ पूर्वो का अध्ययन किया । बीस वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन किया । शेष सब वृत्तान्त गौतम की तरह है । शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना करके यावत् सिद्ध हुए ।
वर्ग-३ अध्ययन-८ [१३] भगवन् ! तृतीय वर्ग के आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जंबू | उस काल, उस समय में द्वारका नगरी में प्रथम अध्ययन में किये गये वर्णन के अनुसार यावंत अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान पधारे । उस काल, उस समय भगवान नेमिनाथ के अंतेवासी-शिष्य छह मुनि सहोदर भाई थे । वे समान आकार, त्वचा और समान अवस्थावाले प्रतीत होते थे । उन का वर्ण नीलकमल, महिष के श्रृंग के अन्तर्वर्ती भाग, गुलिका-रंग विशेष
और अलसी के समान था । श्रीवत्स से अंकित वक्ष वाले और कुसुम के समान कोमल और कुंडल के समान धुंघराले बालोंवाले वे सभी मुनि नलकूबर के समान प्रतीत होते थे । तब वे छहों मुनि जिस दिन मुंडित होकर आगार से अनगार धर्म में प्रव्रजित हुए, उसी दिन अरिहंत अरिष्टनेमि को वंदना नमस्कार कर इस प्रकार बोले-“हे भगवन् ! आपकी आज्ञा पाकर हम जीवन पर्यन्त निरन्तर बेले बेले तप द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरण करें ।" अरिहंत अरिष्टनेमि ने कहा-देवानुप्रियो ! जैसे तुम्हें सुख हो, करो, शुभ कर्म करने में विलम्ब नहीं करना चाहिए । तब भगवान की आज्ञा पाकर उन्होंने जीवन भर के लिये बेले-बेले की तपस्या करते हुए यावत् विचरण करने लगे ।
तदनन्तर उन छहों मुनियों ने अन्यदा किसी समय, बेले की तपस्या के पारणे के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया और गौतम स्वामी के समान यावत् निवेदन करते हैं-भगवन् ! हम बेले की तपस्या के पारणे में आपकी आज्ञा लेकर दो-दो के तीन संघाड़ों से द्वारका नगरी में यावत् भिक्षा हेतु भ्रमण करना चाहते हैं । तब उन छहों मुनियों ने अरिहंत अरिष्टनेमि की आज्ञा पाकर प्रभु को वंदन नमस्कार किया । वंदन नमस्कार कर वे भगवान् अरिष्टनेमि के पास से सहस्राम्रवन उद्यान से प्रस्थान करते हैं । फिर वे दो दो के तीन संघाटकों में सहज गति