________________
औपपातिक-२८
१८१
अपने घर से निकला । निकलकर वह चम्पा नगरी के बीच, जहाँ राजा कूणिक का महल था, जहाँ बहिर्वर्ती राजसभा-भवन था वहाँ आया । राजा सिंहासन पर बैठा । साढ़े बारह लाख रजत-मुद्राएँ वार्ता-निवेदक को प्रीतिदान के रूप में प्रदान की । उत्तम वस्त्र आदि द्वारा उसका सत्कार किया, आदरपूर्ण वचनों से सम्मान किया । यों सत्कृत, सम्मानित कर उसे बिदा किया।
[२९] तब भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने बलव्यापृत को बुलाकर उससे कहादेवानुप्रिय ! आभिषेक्य, प्रधान पद पर अधिष्ठित हस्ति-रत्न को सुसज्ज कराओ । घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना को तैयार करो । सुभद्रा आदि देवियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए यात्राभिमुख, जोते हए यानों को बाहरी सभाभवन के निकट उपस्थापित करो । चम्पा नगरी के बाहर और भीतर, उसके संघाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग तथा सामान्य मार्ग, इन सबकी सफाई कराओ । वहाँ पानी का छिड़काव कराओ, गोबर आदि का लेप कराओ । नगरी के गलियों के मध्य-भागों तथा बाजार के रास्तों की भी सफाई कराओ, पानी का छिड़काव कराओ, उन्हें स्वच्छ व सुहावने कराओ । मंचातिमंच कराओ । तरह तरह के रंगों की, ऊंची, सिंह, चक्र आदि चिह्नों से युक्त ध्वजाएँ, पताकाएँ तथा अतिपताकाएँ, जिनके परिपार्श्व अनेकानेक छोटी पताकाओं से सजे हों, ऐसी बड़ी पताकाएँ लगवाओ । नगरी की दीवारों को लिपवाओ, पुतवाओ । यावत् जिससे सुगन्धित धुएँ को प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले बनते दिखाई दें । इनमें जो करने का हो, उसे करके कर्मकरों, सेवकों, श्रमिकों आदि को आदेश देकर, तत्सम्बन्धी व्यवस्था कर, उसे अपनी देखरेख में संपन्न करवा कर तथा जो दूसरों द्वारा करवाने का हो, उसे दूसरों से करवाकर मुझे सूचित करो कि आज्ञानुपालन हो गया है । यह सब हो जाने पर मैं भगवान् के अभिवंदन हेतु जाऊँ ।
[३०] राजा कूणिक द्वारा यों कहे जाने पर उस सेनानायक ने हर्ष एवं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़े, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया-महाराज की जैसी आज्ञा । सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति-व्यापृत को बुलाया । उससे कहा-देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र महाराज कूणिक के लिए प्रधान, उत्तम हाथी सजाकर शीघ्र तैयार करो । घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना के तैयार होने की व्यवस्था कराओ । फिर मुझे आज्ञा-पालन हो जाने की सूचना करो।
महावत ने सेनानायक का कथन सुना, उसका आदेश विनय-सहित स्वीकार किया । उस महावत ने, कलाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने से जिसकी बुद्धि विविध कल्पनाओं तथा सर्जनाओं में अत्यन्त निपुण थी, उस उत्तम हाथी को उज्ज्वल नेपथ्य, वेषभूषा आदि द्वारा शीघ्र सजा दिया । उस सुसज्ज हाथी का धार्मिक उत्सव के अनुरूप श्रृंगार किया, कवच लगाया, कक्षा को उसके वक्षःस्थल से कसा, गले में हार तथा उत्तम आभूषण पहनाये, इस प्रकार उसे सुशोभित किया । वह बड़ा तेजोमय दीखने लगा । सुललित कर्णपूरों द्वारा उसे सुसज्जित किया । लटकते हुए लम्बे झूलों तथा मद की गंध से एकत्र हुए भौंरों के कारण वहाँ अंधकार जैसा प्रतीत होता था । झूल पर बेल बूंटे कढ़ा प्रच्छद वस्त्र डाला गया । शस्त्र तथा कवचयुक्त वह हाथी युद्धार्थ सज्जित जैसा प्रतीत होता था । उसके छत्र, ध्वजा, घंटा तथा पताका-ये सब यथास्थान योजित किये गये । मस्तक को पाँच कलंगियों से विभूषित कर उसे सुन्दर बनाया । उसके दोनों ओर दो घंटियाँ लटकाई । वह हाथी बिजली सहित काले