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________________ १६६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद क्षत्रिय, मुदिक, मूर्द्धाभिषेक, उत्तम माता-पिता से उत्पन्न, करुणाशील, मर्यादाओं की स्थापना करनेवाला तथा पालन करनेवाला, क्षेमंकर, क्षेमंधर, मनुष्यों में इन्द्र के समान, अपने राष्ट्र के लिए पितृतुल्य, प्रतिपालक, हितकारक, कल्याणकारक, पथदर्शक, उपस्थापक, नरप्रवर, पुरुषवर, पराक्रम में सिंहतुल्य, रौद्रता में बाध सदृश, सामर्थ्य में सर्पतुल्य, पुरुषों में उत्तम पुण्डरीक, और पुरुषों में गन्धहस्ती के समान था वह समृद्ध, दृप्त तथा वित्त या वृत्त था । उसके यहाँ बड़े-बड़े विशाल भवन, सोनेबैठने के आसन तथा रथ, घोड़े आदि सवारियाँ, वाहन बड़ी मात्रा में थे । उसके पास विपुल सम्पत्ति, सोना तथा चाँदी थी । अर्थ लाभ के उपायों का प्रयोक्ता था । उसके यहाँ भोजन कर लिये जाने के बाद बहुत खाद्य सामग्री बच जाती थी । उसके यहाँ अनेक दासियाँ, दास, गायें, भैंसे तथा भेड़ें थीं । उसके यहाँ यन्त्र, कोष, कोष्ठागार तथा शस्त्रागार प्रतिपूर्ण था । प्रभृत सेना थी । अपने राज्य के सीमावर्ती राजाओं या पड़ोसी राजाओं को शक्तिहीन बना दिया था । अपने सगोत्र प्रतिस्पर्द्धियों को विनष्ट कर दिया था । उनका धन छीन लिया था, उनका मान भंग कर दिया था तथा उन्हें देश से निर्वासित कर दिया था । उसी प्रकार अपने शत्रुओं को विनष्ट कर दिया था, उनकी सम्पत्ति छीन ली थी, उनका मानभंग कर दिया था और उन्हें देश से निर्वासित कर दिया था । अपने प्रभावातिशय से उसने उन्हें जीत लिया था, पराजित कर दिया था । इस प्रकार वह राजा निरुपद्रव, क्षेममय, कल्याणमय, सुभिक्षयुक्त एवं शत्रुकृत विध्नरहित राज्य का शासन करता था । [७] राजा कूणिक की रानी का नाम धारिणी था । उसके हाथ-पैर सुकोमल थे । शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ अहीन-प्रतिपूर्ण, सम्पूर्ण थीं । उत्तम लक्षण, व्यंजन, तथा गुण युक्त थी । दैहिक फैलाव, वजन, ऊँचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरी थी । उसका स्वरूप चन्द्र के समान सौम्य तथा दर्शन कमनीय था । परम रूपवती थी । उसकी देह का मध्य भाग मुट्ठी द्वारा गृहीत की जा सके, इतना सा था । पेट पर पड़ने वाली उत्तम तीन रेखाओं से युक्त थी । कपोलों की रेखाएँ कुण्डलों से उद्दीप्त थीं । मुख शरत्पूर्णिमा के चन्द्र के सदृश निर्मल, परिपूर्ण तथा सौम्य था । सुन्दर वेशभूषा ऐसी थी, मानो श्रृंगार रस का आवास-स्थान हो । उसकी चाल, हँसी, बोली, कृति एवं दैहिक चेष्टाएँ संगत थीं । लालित्यपूर्ण आलाप -संलाप में वह चतुर थी । समुचित लोक व्यवहार में कुशल थी । मनोरम, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थी । [८] राजा कूणिक के यहाँ पर्याप्त वेतन पर भगवान् महावीर के कार्यकलाप को सूचित करनेवाला एक वार्ता निवेदक पुरुष नियुक्त था, जो भगवान् के प्रतिदिन के विहारक्रम आदि प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में राजा को निवेदन करता था । उसने अन्य अनेक व्यक्तियों को भोजन तथा वेतन पर नियुक्त कर रक्खा था, जो भगवान् की प्रतिदिन की प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में उसे सूचना करते रहते थे । [९] एक समय की बात है, भंभसार का पुत्र कूणिक अनेक गणनायक, दण्डनायक, राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, मन्त्री, महामन्त्री, गणक, द्वारपाल, अमात्य, सेवक, पीठमर्दक, नागरिक, व्यापारी, सेठ, सेनापति, सार्थवाह, दूत, सन्धिपाल, इन विशिष्ट जनों से संपरिवृत बहिर्वर्ती राजसभा भवन में अवस्थित था । [१०] उस समय श्रमण भगवान् महावीर आदिकर, तीर्थकर, स्वयं-संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवरपुंडरीक, पुरुषवर- गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु- प्रदायक, मार्ग-प्रदायक,
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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