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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
उसकी दीवारों पर गोरोचन तथा आर्द्र लाल चन्दन के, पाँचों अंगुलियों और हथेली सहित, हाथ की छापें लगी थीं । वहाँ चन्दन-कलश रखे थे । उसका प्रत्येक द्वार-भाग चन्दन-कलशों और तोरणों से सजा था । जमीन से ऊपर तक के भाग को छूती हुई बड़ी-बड़ी, गोल तथा लम्बी अनेक पुष्पमालाएँ लटकती थीं । पाँचों रंगों के फूलों के ढेर के ढेर वहाँ चढ़ाये हुए थे, जिनसे वह बड़ा सुन्दर प्रतीत होता था । काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहाँ का वातावरण बड़ा मनोज्ञ था, उत्कृष्ट सौरभमय था । सुगन्धित धूएँ की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बन रहे थे ।
वह चैत्य नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विदूषक, प्लवक, कथक, लासक, लंख, मंख, तूणइल्ल, तुम्बवीणिक, भोजक तथा भाट आदि यशोगायक से युक्त था । अनेकानेक नागरिकों तथा जनपदवासियों में उसकी कीर्ति फैली थी । बहुत से दानशील, उदार पुरुषों के लिए वह आह्वनीय, प्राह्वणीय, अर्चनीय, वन्दनीय, नमस्करणीय, पूजनीय, सत्करणीय, सम्माननीय, कल्याणमय, मंगलमय, दिव्य, पर्युपासनीय था । वह दिव्य, सत्य एवं सत्योपाय था । वह अतिशय व अतीन्द्रिय प्रभावयुक्त था, हजारों प्रकार की पूजा उसे प्राप्त थी । बहुत से लोग वहाँ आते और उस पूर्णभद्र चैत्य की अर्चना करते ।
[३] वह पूर्णभद्र चैत्य चारों ओर से एक विशाल वन-खण्ड से घिरा हुआ था । सघनता के कारण वह वन-खण्ड काला, काली आभावाला, नीला, नीली आभावाला तथा हरा, हरी आभावाला था । लताओं, पौधों व वृक्षों की प्रचुरता के कारण वह स्पर्श में शीतल, शीतल आभामय, स्निग्ध, स्निग्ध आभामय, सुन्दर वर्ण आदि उत्कृष्ट गुणयुक्त तथा तीव्र आभामय था । यों वह वन-खण्ड कालापन, काली छाया, नीलापन, नीली छाया, हरापन, हरी छाया, शीतलता, शीतलछाया, स्निग्धता, स्निग्धछाया, तीव्रता तथा तीव्रछाया लिये हुए था । वृक्षों की शाखाओं के परस्पर गुँथ जाने के कारण वह गहरी, सघन छाया से युक्त था । उसका दृश्य ऐसा रमणीय था, मानो बड़े बड़े बादलों की घटाएँ घिरी हों ।
उस वन-खण्ड के वृक्ष उत्तम-मूल, कन्द, स्कन्ध, छाल, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल तथा बीज से सम्पन्न थे । वे क्रमशः आनुपातिक रूप में सुन्दर तथा गोलाकार विकसित थे । उनके एक-एक-तना तथा अनेक शाखाएँ थीं । उनके मध्य भाग अनेक शाखाओं और प्रशाखाओं का विस्तार लिये हए थे । उनके सघन, विस्तृत तथा सुघड़ तने अनेक मनुष्यों द्वारा फैलाई हुई भुजाओं से भी गृहीत नहीं किये जा सकते थे । उनके पत्ते छेदरहित, अविरल, अधोमुख, तथा उपद्रव-रहित थे । उनके पुराने, पीले पत्ते झड़ गये थे । नये, हरे, चमकीले पत्तों की सघनता से वहाँ अंधेरा तथा गम्भीरता दिखाई देती थी । नवीन, परिपुष्ट पत्तों, कोमल उज्ज्वल तथा हिलते हुए किसलयों, प्रवालों से उनके उच्च शिखर सुशोभित थे । उनमें कई वृक्ष ऐसे थे, जो सब ऋतुओं में फूलों, मंजरियों, पत्तों, फूलों के गुच्छों, गुल्मों तथा पत्तों के गुच्छों से युक्त रहते थे । कई ऐसे थे, जो सदा, समश्रेणिक रूप में स्थित थे । कई जो सदा युगल रूप में कई पुष्प, फल आदि के भार से नित्य विनमित, प्रणमित नमे हुए थे ।
___यों विविध प्रकार की अपनी-अपनी विशेषताएँ लिये हुए वे वृक्ष अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मंजरियों के रूप में मानो शिरोभूषण धारण किये रहते थे । तोते, मोर, मैना, कोयल, कोभगक, भिंगारक, कोण्डलक, चकोर, नन्दिमुख, तीतर, बटेर, बतख, चक्रवाक, कलहंस, सारस प्रभृति पक्षियों द्वारा की जाती आवाज के उन्नत एवं मधुर स्वरालाप से वे वृक्ष गुंजित थे, सुरम्य प्रतीत होते थे । वहाँ स्थित मदमाते भ्रमरों तथा भ्रमरियों या मधुमक्खियों के समूह