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________________ १६२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ । भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ । भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अङ्गीकार किया । पूर्वभव के सम्बन्ध में पृच्छा - हे गौतम ! महाघोष नगर था । वहाँ धर्मघोष गाथापति था । धर्मसिंह नामक मुनिराज को निर्दोष आहार दान से प्रतिलाभित कर मनुष्य-भव के आयुष्य का बन्ध किया और यहाँ पर उत्पन्न हुआ । यावत् साधुधर्म का यथाविधि अनुष्ठान करके श्री भद्रनन्दी अनगार ने बन्धे हुए कर्मों का आत्यंतिक क्षय कर मोक्ष पद को प्राप्त किया । निक्षेप पूर्ववत् । अध्ययन - ९ - 'महाचंद्र' [४५] हे जम्बू ! चम्पा नगरी थी । पूर्णभद्र उद्यान था । पूर्णभद्र यक्ष का यक्षायतन था । राजा दत्त था और रानी रक्तवती थी । महाचन्द्र राजकुमार था । उसका श्रीकान्ता प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ । भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ । महाचन्द्र ने श्रावकों के बारह व्रतों को ग्रहण किया । पूर्वभव पृच्छा - हे गौतम ! चिकित्सिका नगरी थी । महाराजा जितशत्रु थे । धर्मवीर्य अनगार को निर्दोष आहार पानी से प्रतिलम्भित किया, फलतः मनुष्य- आयुष्य को बान्धकर यहाँ उत्पन्न हुआ । यावत् श्रामण्य-धर्म का यथाविधि अनुष्ठान करके महाचन्द्र मुनि बन्धे हुए कर्मों का समूल क्षय कर परमपद को प्राप्त हुए । निक्षेप पूर्ववत् । अध्ययन - १० - 'वरदत्त' [४६] हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में साकेत नाम का नगर था । उत्तरकुरु उद्यान था । उसमें पाशमृग यक्ष का यक्षायतन था । राजा मित्रनन्दी थे । श्रीकान्ता रानी थी । वरदत्त राजकुमार था । कुमार वरदत्त का वरसेना आदि ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहणं हुआ था । भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ । वरदत्त ने श्रावकधर्म अङ्गीकार किया । पूर्वभव पृच्छा - हे गौतम ! शतद्वार नगर था । विमलवाहन राजा था । एकदा धर्मरुचि अनगार को आते हुए देखकर उत्कट भक्तिभावों से निर्दोष आहार का दान कर प्रतिलाभित किया । शुभ मनुष्य आयुष्य का बन्ध किय । यहां उत्पन्न हुआ । शेष वृत्तान्त सुबाहुकुमार की तरह ही समझना । यावत् प्रवज्या ली । वरदत्त कुमार का जीव स्वर्गीय तथा मानवीय, अनेक भवों को धारण करता हुआ अन्त में सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होगा, वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न हो, दृढ़प्रतिज्ञ की तरह सिद्धगति को प्राप्त करेगा । हे जम्बू ! इस प्रकार यावत् मोक्षसम्प्रात श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दशम अध्ययन का अर्थ प्रतिपादन किया है, ऐसा मैं कहता हूँ । भगवन् ! आपका सुखविपाक का कथन, जैसे कि आपने फरमाया है, वैसा ही है, वैसा श्रुतस्कन्ध - २ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण ११ विपाकश्रुत - अंगसूत्र - ११ - पूर्ण
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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