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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद वहाँ से पुनः मनुष्य भव प्राप्त करेगा । दीक्षित होकर यावत् महाशुक्र नामक देवलोक में उत्पन्न होगा । वहाँ से फिर मनुष्य-भव में जन्म लेगा और दीक्षित होकर यावत् आनत नामक नवम देवलोक में उत्पन्न होगा । वहाँ की भवस्थिति को पूर्ण कर मनुष्य-भव में आकर दीक्षित हो आरण नाम के ग्यारहवें देवलोक में उत्पन्न होगा । वहाँ से च्यव कर मनुष्य भव को धारण करके अनगार-धर्म का आराधन कर शरीरान्त होने पर सर्वार्थसिद्ध नामक विमान में उत्पन्न होगा । वहाँ से सुबाहुकुमार का वह जीव व्यवधानरहित महाविदेह क्षेत्र में सम्पन्न कुलों में से किसी कुल में उत्पन्न होगा । वहाँ दृढप्रतिज्ञ की भाँति चारित्र प्राप्त कर सिद्धपद को प्राप्त करेगा । हे जम्बू ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक अंग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादित किया है । ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन - १ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण अध्ययन - २ - 'भद्रनंदी' १६० [३८] द्वितीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्ववत् समझना । हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में ऋषभपुर नाम का नगर था । वहाँ स्तूपकरण्डक उद्यान था । धन्य यक्ष का यक्षायतन था । वहाँ धनावह राजा था । सरस्वती रानी थी । महारानी का स्वप्न-दर्शन, स्वप्न कथन, बालक का जन्म, बाल्यावस्था में कलाएं सीखकर यौवन को प्राप्त होना, विवाह होना, दहेज देना और ऊँचे प्रासादों में अभीष्ट उपभोग करना, आदि सभी वर्णन सुबाहुकुमार ही की तरह जानना चाहिये । अन्तर केवल इतना है कि बालक का नाम 'भद्रनन्दी' था । उसका श्रीदेवी प्रमुख पाँच सौ देवियों के साथ विवाह हुआ । महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अंगीकार किया । पूर्वभव - महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुण्डरीकिणी नाम की नगरी में विजय नामक कुमार था । उसके द्वारा भी युगबाहु तीर्थंकर को प्रतिलाभित करना - उससे मनुष्य आयुष्य का बन्ध होना, यहाँ भद्रनन्दी के रूप में जन्म लेना, यह सब सुबाहुकुमार की तरह जान लेना । यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, मुक्त होगा, निर्वाण पद को प्राप्त करेगा व सर्व दुःखों का अन्त करेगा । निक्षेप पूर्ववत् । अध्ययन - ३ - 'सुजातकुमार' [३९] हे जम्बू ! वीरपुर नगर था । मनोरम उद्यान था । महाराज वीरकृष्णमित्र थे । श्रीदेवी रानी थी । सुजात कुमार था । बलश्री प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राज- कन्याओं के साथ सुजातकुमार का पाणिग्रहण हुआ । भगवान् महावीर पधारे । सुजातकुमार ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया । पूर्वभव वृत्तान्त कहा - इषुकार नगर था । वहाँ ऋषभदत्त गाथापति था । पुष्पदत्त सागर अनगार को निर्दोष आहार दान दिया, शुभ मनुष्य आयुष्य का बन्ध हुआ । आयु पूर्ण होने पर यहाँ सुजातकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ यावत् महाविदेह क्षेत्र में चारित्र ग्रहण कर सिद्ध पद को प्राप्त करेगा । अध्ययन - ४ - 'सुवासवकुमार' [४०] हे जम्बू ! विजयकुमार नगर था । नन्दनवन उद्यान था । अशोक यक्ष का यक्षायतन था । राजा वासवदत्त था । कृष्णादेवी रानी थी । सुवासकुमार राजकुमार था ।
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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