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________________ १५४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद हा ! अहो ! बड़ा अनर्थ हुआ' इन प्रकार कहकर रुदन, आक्रन्दन तथा विलाप करती हुई, महाराजा पुष्यनन्दी से इस प्रकार निवेदन करती हैं-'निश्चय ही हे स्वामिन् ! श्रीदेवी को देवदत्ता देवी ने अकाल में ही जीवन से पृथक् कर दिया तदनन्तर पुष्पनन्दी राजा उन दासियों से इस वृत्तान्त को सुन समझ कर महान् मातृशोक से आक्रान्त होकर परशु से काटे हुए चम्पक वृक्ष की भांति धड़ाम से पृथ्वी-तल पर सर्व अङ्गों से गिर पड़ा । __ तदनन्तर एक मुहूर्त के बाद वह पुष्यनन्दी राजा होश में आया । अनेक राजा-नरेश, ईश्वर, यावत् सार्थवाह के नायकों तथा मित्रों यावत् परिजनों के साथ रुदन, आक्रन्दन व विलाप करता हुआ श्रीदेवी का महान् कृद्धि तथा सत्कार के साथ निष्कासन कृत्य करता है। तत्पश्चात् क्रोध के आवेश में रुष्ट, कुपित, अतीव क्रोधाविष्ट तथा लाल-पीला होता हुआ देवदत्ता देवी को राजपुरुषों से पकड़वाता है । पकड़वाकर इस पूर्वोक्त विधान से ‘यह वध्या है' ऐसी राजपुरुषों को आज्ञा देता है । इस प्रकार निश्चय ही, हे गौतम ! देवदत्ता देवी अपने पूर्वकृत अशुभ पापकर्मों का फल पा रही है । अहो भगवन् ! देवदत्ता देवी यहाँ से काल मास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? हे गौतम ! देवदत्ता देवी ८० वर्ष की परमआयु भोग कर काल मास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक नरक में नारक पर्याय में उत्पन्न होगी । शेष संसारभ्रमण पूर्ववत् करती हुई यावत् वनस्पति अन्तर्गत् निम्ब आदि कटु-वृक्षों तथा कटुदुग्ध वाले अर्कादि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी । तदनन्तर वहाँ से निकलकर गङ्गपुर नगर में हंस रूप से उत्पन्न होगी । वहाँ शाकुनिकों द्वारा वध किए जाने पर वह गंगपुर में ही श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप में जन्म लेगी । वहाँ उसका जीव सम्यक्त्व को प्राप्त कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा । वहाँ से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा । वहाँ चारित्र ग्रहण कर यथावत् पालन कर सिद्धि को प्राप्त करेगा । निक्षेप पूर्ववत् । अध्ययन-९ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (अध्ययन-१० अंजू ) [३४] अहो भगवन् ! इत्यादि, उत्क्षेप पूर्ववत् । हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नगर था । वहां विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था । उस में मणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था । वहाँ विजयमित्र राजा था । धनदेव नामक एक सार्थवाह-रहता था जो धनाढ्य और प्रतिष्ठित था । उसकी प्रियङ्गु नाम की भार्या थी । उनकी उत्कृष्ट शरीरवाली सुन्दर अञ्जू नामक एक बालिका थी । भगवान् महावीर पधारे यावत् परिषद् धर्मदेशना सुनकर वापिस चली गयी । उस समय भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य श्री गौतमस्वामी यावत् भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए विजयमित्र राजा के घर की अशोकवाटिका के समीप से जाते हुए सूखी, भूखी, निर्मांस किटिकिटि शब्द से युक्त अस्थिचविनद्ध तथा नीली साड़ी पहने हुए, कष्टमय, करुणोत्पादक, दीनतापूर्ण वचन बोलती हुई एक स्त्री को देखते हैं । विचार करते हैं । शेष पूर्ववत् समझना। यावत् गौतम स्वामी पूछते हैं-'भगवन् ! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी ?' इसके उत्तर में भगवान ने कहा-हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप अन्तर्गत भारत वर्ष में इन्द्रपुर नगर था । वहाँ इन्द्रदत्त राजा था । इसी नगर में पृथ्वीश्री गणिका रहती थी । इन्द्रपुर नगर में वह पृथ्वीश्री गणिका अनेक ईश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह आदि लोगों को चूर्णादि
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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