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________________ १४४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद सौभाग्य प्राप्त नहीं किया है । वे माताएँ धन्य हैं, कृतपुण्य हैं, उन्हीं का वैभव सार्थक है और उन्होंने ही मनुष्य सम्बन्धी जन्म और जीवन को सफल किया है, जिनके स्तनगत दूध में लुब्ध, मधुर भाषण से युक्त, व्यक्त तथा स्खलित- तुतलाते वचनवाले, स्तनमूल प्रदेश से कांख तक अभिसरणशील नितान्त सरल, कमल के समान कोमल सुकुमार हाथों से पकड़कर गोद में स्थापित किये जानेवाले व पुनःपुनः सुमधुर कोमल-मंजुल वचनों को बोलनेवाले अपने ही कुक्षि- उदर से उत्पन्न हुए बालक या बालिकाएँ हैं । उन माताओं को मैं धन्य मानती हूँ । उनका जन्म भी सफल और जीवन भी सफल है । मैं अधन्या हूँ, पुण्यहीन हूँ, मैंने पुण्योपार्जन नहीं किया है, क्योंकि, मैं इन बालसुलभ चेष्टाओं वाले एक सन्तान को भी उपलब्ध न कर सकी । अब मेरे लिये यही श्रेयस्कर है कि मैं प्रातःकाल, सूर्य उदय होते ही, सागरदत्त सार्थवाह से पूछकर विविध प्रकार के पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलङ्कार लेकर बहुत से ज्ञातिजनों, मित्रों, निजकों, स्वजनों, सम्बन्धीजनों और परिजनों की महिलाओं के साथ पाटलिखण्ड नगर से निकलकर बाहर उद्यान में, जहाँ उम्बरदत्त यक्ष का यक्षायतन है, वहां जाकर उम्बरदत्त यक्ष की महार्ह पुष्पार्चना करके और उसके चरणों में नतमस्तक हो, इस प्रकार प्रार्थनापूर्ण याचना करूं - 'हे देवानुप्रिय ! यदि मैं अब जीवित रहनेवाले बालिका या बालक को जन्म दूं तो मैं तुम्हारे याग, दान, भाग, व देव भंडार में वृद्धि करूंगी।' इस प्रकार ईप्सित वस्तु की प्रार्थना के लिये उसने निश्चय किया । प्रातःकाल सूर्योदय होने के साथ ही जहाँ पर सागरदत्त सार्थवाह था, वहाँ पर आकर सागरदत्त सार्थवाह से कहने लगी- 'हे स्वामिन् ! मैंने आप के साथ मनुष्य सम्बन्धी सांसारिक सुखों का पर्याप्त उपभोग करते हुए आजतक एक भी जीवित रहनेवाले बालक या बालिका को प्राप्त नहीं किया । अतः मैं चाहती हूँ कि यदि आप आज्ञा दें तो मैं अपने मित्रों, ज्ञातिजनों निजकों, स्वजनों, सम्बन्धीजनों और परिजनों की महिलाओं के साथ पाटलिखण्ड नगर से बाहर उद्यान में उम्बरदत्त यक्ष की महार्ह पुष्पार्चना कर पुत्रोपलब्धि के लिये मनौती मनाऊँ ।' 'भद्रे ! मेरी भी यही इच्छा है कि किसी प्रकार तुम्हारे जीवित रहनेवाले पुत्र या पुत्री उत्पन्न हों ।' उसने गंगदत्ता के उक्त प्रस्ताव का समर्थन किया । तब सागरदत्त सार्थवाह की आज्ञा प्राप्त कर वह गंगदत्ता भार्या विविध प्रकार के पुष्प, वस्त्र, गंध, माला एवं अलंकार तथा विविध प्रकार की पूजा की सामग्री लेकर, मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धी एवं परिजनों की महिलाओं के साथ अपने घर से निकली और पाटलिखण्ड नगर के मध्य से होती हुई एक पुष्करिणी के समीप पहुँची । पुष्करिणी में प्रवेश किया । वहाँ जलमज्जन एवं जलक्रीडा कर कौतुक तथा मंगल प्रायश्चित्त को करके गीली साड़ी पहने हुए वह पुष्करिणी से बाहर आई । पुष्पादि पूजासामग्री को लेकर उम्बरदत्त यक्ष के यक्षायतन के पास पहुँची । यक्ष को नमस्कार किया । फिर लोमहस्तक लेकर उसके द्वारा यक्षप्रतिमा का प्रमार्जन किया । जलधारा से अभिषेक किया । कषायरंग वाले सुगन्धित एवं सुकोमल वस्त्र से उसके अंगों को पोंछा । श्वेत वस्त्र पहनाया, महार्ह, पुष्पारोहण, वस्त्रारोहण, गन्धारोहण, माल्यारोहण और चूर्णारोहण किया । धूप जलाकर यक्ष के सन्मुख घुटने टेककर पांव में पड़कर इस प्रकार निवेदन किया- 'जो मैं एक जीवित बालक या बालिका को जन्म दूँ तो याग, दान एवं भण्डार की वृद्धि करूँगी ।' इस प्रकार यावत् याचना करती है फिर जिधर से आयी थी उधर लौट जाती है ।
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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