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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
चढ़ा लेता है । शकटकुमार को अपने पुरुषों से पकड़वाकर यष्टियों, मुट्ठियों, घुटनों, कोहनियों से उसके शरीर को मथित कर अवकोटकबन्धन से जकड़वा लेता है । तदनन्तर उसे महाराज महचन्द्र के पास ले जाकर दोनों हाथ जोड़कर तथा मस्तक पर दसों नखवाली अञ्जलि करके इस प्रकार निवेदन करता है-'स्वामिन् ! इस शकट कुमार ने मेरे अन्तःपुर में प्रवेश करने का अपराध किया है ।
महाराज महचन्द्र सुषेण मन्त्री से इस प्रकार बोले-'देवानुप्रिय ! तुम ही इसको अपनी इच्छानुसार दण्ड दे सकते हो ।' तत्पश्चात् महाराज महचन्द्र से आज्ञा प्राप्त कर सुषेण अमात्य ने शकट कुमार और सुदर्शना गणिका को पूर्वोक्त विधि से वध करने की आज्ञा राजपुरुषों को प्रदान की।
[२६] शकट की दुर्दशा का कारण भगवान् से सुनकर गौतम स्वामी ने प्रश्न कियाहे प्रभो ! शकटकुमार बालक यहाँ से काल करके कहाँ जाएगा और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! शकट दारक को ५७ वर्ष की परम आयु को भोगकर आज ही तीसरा भाग शेष रहे दिन में एक महालोहमय तपी हुई अग्नि के समान देदीप्यमान स्त्रीप्रतिमा से आलिंगित कराया जाएगा । तब वह मृत्यु-समय में मरकर रत्नप्रभा नाम की प्रथम नरक भूमि में नारक रूप से उत्पन्न होगा । वहाँ से निकलकर राजगृह नगर में मातङ्ग कुल में युगल रूप से उत्पन्न होगा। युगल के माता-पिता बारहवें दिन उनमें से बालक का नाम 'शकटकुमार' और कन्या का नाम 'सुदर्शना' रक्खेंगे ।
तदनन्तर शकटकुमार बाल्यभाव को त्याग कर यौवन को प्राप्त करेगा । सुदर्शना कुमारी भी बाल्यावस्था पार करके विशिष्ट ज्ञानबुद्धि की परिपक्वता को प्राप्त करती हुई युवावस्था को प्राप्त होगी । वह रूप, यौवन व लावण्य में उत्कृष्ट श्रेष्ठ व सुन्दर शरीर वाली होगी । तदनन्तर सुदर्शना के रूप, यौवन और लावण्य की सुन्दरता में मूर्च्छित होकर शकटकुमार अपनी बहिन सुदर्शना के साथ ही मनुष्य सम्बन्धी प्रधान कामभोगों का सेवन करता हुआ जीवन व्यतीत करेगा । किसी समय वह शकटकुमार स्वयमेव कूटग्राहित्व को प्राप्त कर विचरण करेगा । वह कूटग्राह बना हुआ वह महाअधर्मी एवं दुष्प्रत्यानन्द होगा । इन अधर्म-प्रधान कर्मों से बहुत से पापकर्मों को उपार्जित कर मृत्युसमय में मर कर रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में नारकी रूप से उत्पन्न होगा । उसका संसार-भ्रमण भी पूर्ववत् जानना यावत् वह पृथ्वीकाय आदि में लाखों-लाखों बार उत्पन्न होगा । वहाँ से वाराणसी नगरी में मत्स्य के रूप में जन्म लेगा । वहाँ पर मत्स्यघातकों के द्वारा बध को प्राप्त होकर यह फिर उसी वाराणसी नगरी में एक श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा । वहाँ सम्यक्त्व एवं अनगार धर्म को प्राप्त करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देव होगा । वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा । वहाँ साधुवृत्ति का सम्यक्तया पालन करके सिद्ध, बुद्ध होगा, समस्त कर्मों और दुःखों का अन्त करेगा । अध्ययन-४ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(अध्ययन-५ बृहस्पतिदत्त) [२७] पांचवें अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जानना । हे जम्बू ! उस काल और उस समय में कौशाम्बी नगरी थी, जो भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्वचक्र-परचक्र के