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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
आकर अभनसेन चौरसेनापति के साथ युद्ध में संप्रवृत्त हो जाता है । तदनन्तर, अभनसेन चोर सेनापति ने उस दण्डनायक को शीघ्र ही हतमथित कर दिया, वीरों का घात किया, ध्वजा पताका को नष्ट कर दिया, दण्डनायक का भी मानमर्दन कर उसे और उसके साथियों को इधर उधर भगा दिया । तदनन्तर अभनसेन चोरसेनापति के द्वारा हत-मथित यावत् प्रतिषेधित होने से तेजोहीन, बलहीन, वीर्यहीन तथा पुरुषार्थ और पराक्रम से हीन हुआ वह दण्डनायक शत्रुसेना को परास्त करना अशक्य जानकर पुनः पुरिमतालनगर में महाबल नरेश के पास आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दसों नखों की अञ्जलि कर इस प्रकार कहने लगा-प्रभो ! चोरसेनापति अभग्नसेन ऊँचे, नीचे और दुर्ग-गहन वन में पर्याप्त खाद्य तथा पेय सामग्री के साथ अवस्थित है । अतः बहुत अश्वबल, गजबल, योद्धाबल और रथबल, कहाँ तक कहूँचतुरङ्गिणी सेना के साक्षात् बल से भी वह जीते जी पकड़ा नहीं जा सकता है ! तब राजाने सामनीति, भेदनीति व उपप्रदान नीति से उसे विश्वास में लाने के लिये प्रवृत्त हुआ । तदर्थ वह उसके शिष्यतुल्य, समीप में रहने वाले पुरुषों को तथा मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन सम्बन्धी और परिजनों को धन, स्वर्ण रत्न और उत्तम सारभूत द्रव्यों के द्वारा तथा रुपयों पैसों का लोभ देकर उससे जुदा करने का प्रयत्न करता है और अभग्नसेन चोरसेनापति को भी बार बार महाप्रयोजनवाली, सविशेष मूल्यवाली, बड़े पुरुष को देने योग्य यहाँ तक कि राजा के योग्य भेंट भेजने लगा | इस तरह भेंट भेजकर अभग्नसेन चोरसेनापति को विश्वास में ले आता
[२३] तदनन्तर किसी अन्य समय महाबल राजा ने पुरिमताल नगर में महती सुन्दर व अत्यन्त विशाल, मन में हर्ष उत्पन्न करने वाली, दर्शनीय, जिसे देखने पर भी आखें न थकें ऐसी सैकड़ों स्तम्भों वाली कुटाकारशाला बनवायी । उसके बाद महाबल नरेश ने किसी समय उस षड्यन्त्र के लिए बनवाई कूटाकारशाला के निमित्त उच्छुल्क यावत् दश दिन के प्रमोद उत्सव की उद्घोषणा कराई । कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा कि हे भद्रपुरुषो ! तुम शालाटवी चोरपल्ली में जाओ और वहाँ अभग्रसेन चोरसेनापति से दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दस नखों वाली अञ्जलि करके, इस प्रकार निवेदन करो-हे देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्क यावत् दशदिन पर्यन्त प्रमोद-उत्सव की घोषणा कराई है, तो क्या आपके लिए विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा पुष्प वस्त्र माला अलङ्कार यहीं पर लाकर उपस्थित किए जाएँ अथवा आप स्वयं वहाँ इस प्रसंग पर उपस्थित होंगे ?
तदनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष महाबल नरेश की इस आज्ञा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् अञ्जलि करके 'जी हाँ स्वामी' कहकर विनयपूर्वक सुनते हैं और सुनकर पुरिमताल नगर से निकलते हैं । छोटी-छोटी यात्राएँ करते हुए, तथा सुखजनक विश्राम-स्थानों पर प्रातःकालीन भोजन आदि करते हुए जहाँ शालाटवी नामक चोर-पल्ली थी वहाँ पहुंचे । वहाँ पर अभग्नसेन चोरसेनापति से दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दस नखों वाली अंजुलि करके इस प्रकार निवेदन करने लगे- देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्य यावत् दस दिनों का प्रमोद उत्सव उद्घोषित किया है, तो क्या आपके लिये अशन, पान, खादिम, स्वादिम, पुष्पमाला अलंकार यहाँ पर ही उपस्थित किये जाएँ अथवा आप स्वयं वहाँ पधारते हैं ? तब अभग्नसेन सेनापति ने कहा-'हे भद्र पुरुषो ! मैं स्वयं ही प्रमोद-उत्सव में पुरिमताल नगर में