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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
सर्वांगसुन्दरी पत्नी थी । उस विजय चोरसेनापति का पुत्र एवं स्कन्दश्री का आत्मज अग्रसेन नाम का एक बालक था, जो अन्यून पांच इन्द्रियों वाला तथा विशेष ज्ञान रखनेवाला और बुद्धि की परिपक्कता से युक्त यौवनावस्था को प्राप्त किये हुए था । उस काल तथा उस समय में पुरिमताल नगर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे । परिषद् नीकली । राजा भी गया । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया । राजा तथा जनता वापिस लौट आये ।
उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के प्रधान शिष्य गौतम स्वामी राजमार्ग में पधारे । उन्होंने बहुत से हाथियों, घोड़ों तथा सैनिकों की तरह शस्त्रों से सुसज्जित और कवच पहिने हुए अनेक पुरुषों को देखा । उन सब के बीच अवकोटक बन्धन से युक्त उद्घोषित एक पुरुष को भी देखा । राजपुरुष उस पुरुष को चत्वर पर बैठाकर उसके आगे आठ लघुपिताओं को मारते हैं । तथा कशादि प्रहारों से ताड़ित करते हुए दयनीय स्थिति को प्राप्त हुए उस पुरुष को उसके ही शरीर में से काटे गये मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों को खिलाते हैं और रुधिर का पान कराते हैं । द्वितीय चत्वर पर उसकी आठ लघुमाताओं को उसके समक्ष ताड़ित करते हैं और मांस खिलाते तथा रुधिरपान कराते हैं । तीसरे चत्वर पर आठ महापिताओं को, चौथे चत्वर पर आठ महामाताओं को, पांचवे पर पुत्रों को, छट्ठे पर पुत्रवधुओं को, सातवें पर जामाताओं को, आठवें पर लड़कियों को, नवमें पर नप्ताओं को, दसवें पर लड़के और लड़कियों की लड़कियों को, ग्यारहवें पर नप्तृकापतियों को, तेरहवें पर पिता की बहिनों के पतियों को, चौदहवें पर पिता की बहिनों को, पन्द्रहवें पर माता की बहिनों के पतियों को, सोलहवें पर माता की बहिनों को, सत्रहवें पर मामा की स्त्रियों को, अठारहवें पर शेष मित्र, ज्ञाति, स्वजन सम्बन्धी और परिजनों को उस पुरुष के आगे मारते हैं तथा चाबुक के प्रहारों ताड़ित करते हुए वे राजपुरुष करुणाजनक उस पुरुष को उसके शरीर से निकाले हुए मांस के टुकड़े खिलाते और रुधिर का पान कराते हैं ।
[२०] तदनन्तर भगवान् गौतम के हृदय में उस पुरुष को देखकर यह सङ्कल्प उत्पन्न हुआ यावत् पूर्ववत् वे नगर से बाहर निकले तथा भगवान् के पास आकर निवेदन करने लगे । यावत् भगवन् ! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? जो इस तरह अपने कर्मों का फल पा रहा है ? इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम! उस काल तथा उस समय इस जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में पुरिमताल नामक समृद्धिपूर्ण नगर था । वहां उदित नाम का राजा राज्य करता था, जो हिमालय पर्वत की तरह महान् था । निर्णय नाम का एक अण्डों का व्यापारी भी रहता था । वह धनी तथा पराभव को न प्राप्त होने वाला, अधर्मी यावत् परम असन्तोषी था । निर्णयनामक अण्डवणिक के अनेक दत्तभृतिभक्तवेतन अनेक पुरुष प्रतिदिन कुद्दाल व बांस की पिटारियों को लेकर पुरिमताल नगर के चारों ओर अनेक, कौवी के घूकी के, कबूतरी के,
गुली के, मोरनी के, मुर्गी के, तथा अनेक जलचर, स्थलचर, व खेचर आदि जीवों के अण्डों को लेकर पिटारियों में भरते थे और भरकर निर्णय नामक अण्डों के व्यापारी को अण्डों से भरी हुई वे पटरियाँ देते थे ।
तदनन्तर वह निर्णय नामक अण्डवर्णक् के अनेक वेतनभोगी पुरुष बहुत से कौवी यावत् कुकड़ी के अण्डों तथा अन्य जलचर, स्थलचर एवं खेचर आदि पूर्वोक्त जीवों के अण्डों को तवों पर कड़ाहों पर हाथों में एवं अंगारों में तलते थे, भूनते थे, पकाते थे । राजमार्ग की